सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की केंद्र की रिव्यू पिटिशन, कहा- आरक्षण के लिए राज्य तय नहीं कर सकते कौन है पिछड़ा वर्ग
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस. रवींद्र की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, ‘हमने पांच मई के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका को देखा और समझा. ‘हमें पुनर्विचार याचिका पर विचार करने का कोई मजबूत आधार दिखाई नहीं देता. लिहाजा हम पुनर्विचार याचिका खारिज करते हैं.’
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि 5 मई को जो फैसला सुनाया गया था उसके मुताबिक संविधान में 102वें संशोधन के बाद नौकरियों और दाखिलों के लिए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की घोषणा करने का अधिकार अब राज्यों के पास नहीं रही. बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने महाराष्ट्र के 2018 के कानून को रद्द कर दिया था जिसमें प्रवेश और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने का प्रावधान था.
ये भी पढ़ें:- कनाडा में रिकॉर्डतोड़ गर्मी से गांवों में लगी आग, अब तक 1000 लोग हुए शिफ्ट
102वें संशोधन पर कोर्ट की राय
संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एल एन राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने 102वें संशोधन की संवैधानिक वैधता बरकरार रखने को लेकर न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर के साथ सहमति जताई, लेकिन कहा कि राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की सूची पर फैसला नहीं कर सकते और केवल राष्ट्रपति के पास ही इसे अधिसूचित करने का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 1992 में मंडल फैसले के तहत निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के उल्लंघन के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है. न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान तैयार तीन बड़े मामलों पर सहमति जताई और कहा कि मराठा समुदाय के आरक्षण की आधार एम सी गायकवाड़ आयोग रिपोर्ट में समुदाय को आरक्षण देने के लिए किसी असाधारण परिस्थिति को रेखांकित नहीं किया गया है.