सोशल मीडिया पर बोले चीफ जस्टिस रमना, जजों को इसके दबाव में नहीं आना चाहिए

जस्टिस रमना ने अंग्रेजी हुकूमत का हवाला देते हुए कहा कि कई बार सरकार का बनाया हुआ कानून भी अन्याय का कारण होता है. सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस रमना ने कहा की जजों को सोशल मीडिया के दबाव में नहीं आना चाहिए. सोशल मीडिया में जो नज़रिया ट्रेंड करता है वो जरूरी नहीं की सही हो. ये भी जरूरी नहीं कि जो बहुमत के लोग सोच रहे है वो सही हो. इसका ये मतलब नहीं की जज सोशल मीडिया या समाज से दूर रहें. जजों को सही और गलत का फर्क समझना होगा. बिना किसी दबाव में आए. मीडिया ट्रायल की बुनियाद पर अदालत को फैसला नहीं देना चाहिए.
ये होना चाहिए बहस का मुद्दा
जस्टिस रमना ने कहा की इस बात पर बहस होनी चाहिए कि सोशल मीडिया किस तरह से संस्थाओं पर असर डालता है. जस्टिस रमना ने कहा कि ये पक्षपात नाइंसाफी को जन्म देता है. खास तौर पर अल्पसंख्यकों के मामले में. कानून व्यवस्था अल्पसंख्यकों की सामाजिक स्थिति के हिसाब से होना चाहिए जो उनकी तरक्की में मदद करें. भारत के लोकतंत्र को लेकर जस्टिस रमना ने कुछ क्रांतिकारी बातें कहीं. उन्होंने कहा की आज़ाद भारत में 17 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं और इनमें से आधे चुनाव में सरकारें बदली हैं. यानि जनता ने सरकारों को बदल कर अपना फर्ज निभाया है. अब उन लोगों को सोचने की जरूरत है जो सरकार का अंग है. उन्हें ये सोचना होगा की वो संविधान द्वारा दी गई जिम्मेदारी को निभा रहे हैं या नहीं.
सरकार बदल देना उत्पीड़न का अंत नहीं
जनता के लिए संदेश देते हुए जस्टिस रमना ने कहा की सिर्फ कुछ सालों में सरकार बदल देना उत्पीड़न का अंत नहीं करता. जस्टिस रमना ने करोना के बाद पैदा हुए हालात पर भी टिप्पणी की. उन्होंने कहा की हमें ये सोचना होगा की आम नागरिकों को सुरक्षा देने और उनकी भलाई के लिए हमने कितना काम किया है. उन्होंने कहा, मेरा पद इस बात की इजाजत नहीं देता कि मैं किसी की भूमिका पर टिप्पणी करूं. लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है की कोरोना महामारी सिर्फ एक झलकी है आने वाले दशकों में और बड़ी समस्या सामने आने वाली है.’