बुंदेलखंड: पर्यावरण संरक्षण के जरिए 100 गांवों की सूरत बदलने वाली वर्षा बनी नेशनल ज्योग्रैफिक की ‘चेंज मेकर’

मुंबई. हीरा, पन्ना, सोना, चांदी, शीशा, लोहा और चूना जैसी तमाम अनमोल प्राकृतिक खनिज संपदाओं के साथ विंध्याचल के उपखंडों पर बसे बुंदेलखंड की गिनती आज देश के सबसे सूखाग्रस्त इलाकों में होती है. यमुना, बेतवा, केन, पहूज, धसान, चंबल, काली, सिंध, टौंस व सोन जैसी नदियों के पानी से सिंचित और वन संपदाओं से भरपूर रहे बुंदेलखंड को आखिर किसकी नजर लग गई, इस सवाल को लेकर रेडियो बुंदेलखंड की आरजे वर्षा रायकवार ने कुछ साल पहले ओरछा इलाके के गांवों का रुख किया.
वर्षा ने ग्रामीणों से सीधा संवाद कर पहले अपने सवालों के जवाब तलाशे, फिर उन्हीं जवाबों को पांच मंत्रो में ढाल कर एक अभियान की शुरुआत की. चंद लोगों के साथ शुरू हुए इस अभियान के साथ देखते ही देखते 40 हजार से अधिक लोगों का कारवां जुड़ता चला गया. पर्यावरण संरक्षण से जुड़े वर्षा के इस अभियान ने आज बुंदेलखंड के करीब 100 गांवों की सूरत बदल दी है. इस प्रयास को सराहते हुए पहले संयुक्त राष्ट्र ने वर्षा को 17 क्लाइमेट लीडर्स की सूची में जगह दी और अब नेशनल जियोग्राफिक ने उन्हें चेंज मेकर्स के तौर पर चुना है.
बुंदेलखंड की यह कहानी वर्षा की जुबानी…
आइए, बुंदेलखंड के गांवों की खुशियों और बुंदेली ग्रामीणों के चेहरे की मुस्कान वापस करने की चाहत रखने वाली वर्षा रायकवार की कहानी उन्हीं की जुबानी जानते हैं…
बचपन में मेरे घर के करीब बहुत सारे जंगल हुआ करते थे. समय के साथ ये जंगल हमसे दूर होते चले गए. आखिर में बची बंजर होती वीरान सूखी जमीन. मैं अपने पापा से अक्सर पूछा करती थी कि ये जंगल कहां गए? हमारी फसल पहले इतनी अच्छी हुआ करती थी, जो आज नहीं होती है इतनी अच्छी. जब भी मैंने यह सवाल पूछा, मुझे एक ही जवाब मिला – बेटा, जो भी हो रहा है भगवान की मर्जी से हो रहा है, मैने इसमें कुछ नहीं किया, न ही हमारा इसमें कुछ लेना देना है.
लेकिन मेरा विश्वास था कि भगवान ऐसा कैसे कर सकते हैं. कहते हैं ना परम पिता परमेश्वर हैं, फिर वह अपने बच्चों के साथ गलत कैसे कर सकते हैं, मुझे उस सवाल का जवाब ढूंढना था कि अचानक सबकुछ खत्म कैसे हो गया? पहले जो चीजें एकदम सही हुआ करती थीं, हम इतना खुश हुआ करते थे, स्वस्थ्य हुआ करते थे, सारी चीजें एकदम सही थीं, लेकिन अभी सब इधर का उधर कैसे हो गया… इन्हीं सवालों के साथ मैंने रेडियो बुंदेलखंड ज्वाइन किया. रेडियो ज्वाइन करने के बाद जहन में कौंधते सवालों के जवाब तलाशने के लिए मुझे एक नई दिशा मिली.
मैंने बहुत सारे ऐसे प्रोग्राम बनाए कि आखिर ऐसा क्यो हो रहा है, मैं बहुत सारे लोगों के बीच में गई, समुदाय के बीच में गई, वहां उनसे पूछा कि भैया यह क्या हो रहा है, पहले आप लोग इतना अच्छे से रहा करते थे, आपकी फसल इतनी अच्छे से हुआ करती थी, तो इस पर यही जवाब मिलता था – ‘बेटा, को जाने की हो रौ है…’ मैंने धीरे-धीरे समझा कि लोगों में जागरूकता की कमी है, लोगों को पता ही नहीं है कि पर्यावरण और जलवायु के साथ छेड़छाड़ ने उन्हें इस मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है.
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शुरू-शुरू में लोगों को समझ नहीं आई मेरी बात
मैनें सोचा, क्यों न इनकी जागरूकता बढ़ाई जाए. इसको लेकर उनकी ही आवाज में मैंने छोटे-छोटे से प्रोग्राम बनाना शुरू किया. लेकिन, इसका कोई असर नहीं दिखा, क्योंकि लोग क्लाइमेट को कोई काम करना ही नहीं चाहते थे. लोगों के दिमाग में सिर्फ एक ही बात चलती थी कि अपनी आय कैसे बढ़ाई जाए. खेती में ज्यादा पैदावार कैसे होती है. थोड़े से फायदा के लालच में वह अपने खेतों में रासायनिक खाद का इस्तेमाल भर-भरकर कर रहे थे, जो पर्यावरण के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं था.
लोग पानी की अहमियत नहीं समझ रहे थे, बारिश होती है और पानी बह जाता है, उसका संरक्षण नहीं कर रहे हैं, पहले बुंदेलखंड में 90 दिनों की बारिश हुआ करती थी, लेकिन वह घटकर सिर्फ एक ही महीने की बची है और वह भी इतनी खराब हो रखी है कि एक दम से पानी आ जाता है और एक दम से बंद हो जाता है. बारिश पानी बुंदेली धरती के काम नहीं आ रहा है और जिससे हमारा वाटर लेबल लगातार कम ही होता जा रहा है. लोगों की ऐसी ही छोटी-छोटी कई गलतियां पर्यावरण को हमसे दूर करती जा रहीं थीं.
मैने इन्हीं छोटी-छोटी कुछ गलतियों को सुधारने के लिए लोगों के बीच जाने का फैसला किया. मैंने एक-एक करके इलाके के सभी गांवों का रुख किया. महिलाओं को घर में पानी बचाने के तरीके और उसके सही इस्तेमाल पर बातचीत की. बुंदेली किसानों से मिलकर उनको रासायनिक खाद के नुकसान और जैविक खाद के फायदे बताने की कोशिश की. मैंने ग्रामीणों से अपने मन के उन सभी सवालों और उनके जवाबों को साझा किया, जो मुझे यहां तक लेकर आए थे. धीरे-धीरे लोगों को मेरी बात समझ आने लगी.
‘शुभ कल लीडर’ ने बदली गांवों की तस्वीर
‘शुभ कल लीडर’ ने मेरे इस अभियान को पंख लगा दिए. दरअसल, विश्व बैंक की मदद में हमने एक कार्यक्रम की शुरूआत की, जिसका नाम रखा ‘कौन बनेगा शुभ कल लीडर.’ इस अभियान के तहत हमने पहले हर गांव से पांच पांच लोगों को अपने साथ जोड़ा. इन पांच लोगों ने दूसरे लोगों को हमसे जोड़ना शुरू किया. देखते ही देखते हमारे इस अभियान के साथ 40 हजार से अधिक ग्रामीण जुड़ गए और हमारा कारवां निकल पड़ा. इस अभियान को सफल बनाने के लिए हमने पांच मंत्रों का चुनाव किया.
ये मंत्र थे किचन गार्डर, वर्षा जल संचयन, कृषि वानगी, अमृत मिट्टी. धीरे-धीरे इन मंत्रों का असर दिखना शुरू हुआ. गांवों की तस्वीर बदलने लगी. आज हम बुंदेलखंड के 100 गांवों को बदलने में कामयाब रहे हैं. हमारा सफर अभी भी जारी है …. यह सफर तब तक जारी रहेगा, जब तक बुंदेलखंड के सभी गांवों की तस्वीर बदल नहीं जाती. मेरी और मेरे साथियों की यही कोशिश है िक हम बुंदेलखंड को फिर वही खुशी वापस कर सकें, जो कुछ दशकों पहले तक हर बुंदेली के चेहरे पर बसती थी. बस यही था अभी तक का मेरा अब तक का सफर.
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