75,000 से अधिक भारतीयों ने बिहार में लहराया तिरंगा, पाकिस्तान के 18 साल पुराने रिकॉर्ड को तोड़ा

जगदीशपुर (बिहार): जगदीशपुर के तत्कालीन राजा वीर कुंवर सिंह की 164 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर पूरे पांच मिनट के लिए जगदीशपुर में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लहराया गया. कुंवर सिंह को 1857 में लड़े गए पहले स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एक माना जाता है. यह कार्यक्रम केंद्र सरकार की ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ पहल के तहत आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम में 77,700 लोगों ने एक साथ भारत का राष्ट्रीय ध्वज लहराकर 2004 में पाकिस्तान के 56,000 लोगों द्वारा लाहौर में पाकिस्तानी झंडा लहराकर बनाए गए विश्व रिकॉर्ड को तोड़ दिया.
ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान शाह के साथ केंद्रीय मंत्री आर के सिंह और नित्यानंद राय, उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी तथा उनके पूर्ववर्ती सुशील कुमार मोदी समेत बिहार के शीर्ष भाजपा नेता मौजूद थे. ‘वंदे मातरम’ के वाद्य गायन के साथ ही राजनेताओं ने तिरंगा भी लहराया. शाह का दो साल से अधिक समय में राज्य का यह पहला दौरा है. उनका बिहार का पिछला दौरा जनवरी 2020 में हुआ था. उस समय उन्होंने सीएए-एनपीआर-एनआरसी विवाद के मद्देनजर वैशाली जिले में एक रैली को संबोधित किया था.
कार्यक्रम में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के साथ पूरे पांच मिनट तक तिरंगा लहराया गया. उपस्थित लोगों को पहचान के लिए बैंड पहनाया गया और निगरानी के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के क्रम में ‘कैमरा ट्रैप’ लगाया गया. कार्यक्रम स्थल तब लोगों की तालियों से गूंज उठा जब विशाल स्क्रीन पर झंडा लहराने वालों की संख्या 77,700 दिखी. पिछला विश्व रिकॉर्ड 56,000 पाकिस्तानियों द्वारा बनाया गया था जिन्होंने 2004 में लाहौर में एक समारोह में अपना राष्ट्रीय ध्वज लहराया था.
गृह मंत्री ने कहा कि इतिहास ने बाबू वीर कुंवर सिंह के साथ अन्याय किया और उनकी वीरता, योग्यता एवं बलिदान के अनुरूप उन्हें स्थान नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल्पना की है कि भारत जब 2047 में स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएगा तो पूरी दुनिया में भारत हर क्षेत्र में शीर्ष पर होना चाहिए तथा बाबू वीर कुंवर सिंह को यही सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है.
इतिहासकारों के मुताबिक, वीर कुंवर सिंह ने 23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना को हराया था. उनके सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिकों को भगाकर वहां के किले से ‘यूनियन जैक’ उतार फेंका था. इसे उनका ‘विजयोत्सव’ कहा जाता है। हालांकि बुरी तरह घायल होने के कारण इस जीत के तीन दिन बाद ही वीर कुंवर सिंह का निधन हो गया था.
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