Exclusive leap of faith beneath the surface of punjabs religious conversion row lies a sad reality

ANVIT SRIVASTAVA
नई दिल्ली. हिमनीश भगत (7 वर्ष) जन्म से देख नहीं सकता. उसके पिता संजीव कुमार भगत कन्फेक्शनरी का बिजनेस करते हैं. संजीव ने हिमनीश के इलाज के लिए सारे जतन कर लिए हैं. उन्होंने जालंधर और आस-पास के सभी अस्पतालों में अपने बच्चे को दिखाया लेकिन कोई आस नहीं दिखी. बाद में उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ से थोड़ी उम्मीद जगी लेकिन दो साल इलाज करवाने के बाद कोई ज्यादा फायदा नहीं हुआ. करीब एक साल पहले परिवार को कुछ स्थानीय ईसाई लोगों ने कहा कि अगर मिशनरियों से मुलाकात की जाए तो बच्चे की आखों की रोशनी वापस आ सकती है. हालांकि बच्चे के मां-बाप अब तक इस प्रस्ताव पर राजी नहीं हुए हैं.
संजीव भगत कहते हैं- मुझे बताया गया कि मिशनरियों के पास जाने वाले कई लोगों की वर्षों लंबी बीमारियां ठीक हुई है. उन्होंने वादा किया कि अगर मैं ईसाई बन जाता हूं तो मेरा बच्चा देख सकेगा. लेकिन मैंने ये शर्त नहीं स्वीकार की. मुझे इस बात में कोई तर्क नहीं दिखाई देता. इसके अलावा मेरी पत्नी और मां भी धर्म बदलने के खिलाफ हैं.
हिमनीश कक्षा 2 में पढ़ाई करता है और ब्रेल लिपि का अध्ययन कर रहा है. उसकी मां सुनीता कहती हैं कि उन्हें किसी भी धर्म से ज्यादा मेडिकल साइंस पर भरोसा है.
इन्हें हुआ फायदा
लेकिन संजीव भगत से उलट 42 वर्षीय सोम सिंह (बदला हुआ नाम) की कहानी अलग है. वो जालंधर के बाहरी इलाके के रहने वाले हैं. वो कहते हैं कि उन्हें मिशनरियों से फायदा हुआ है. सिंह ने न्यूज़18 को बताया कि उनकी पत्नी ने एक साल पहले ईसाई धर्म स्वीकार किया था. पत्नी को 8 हजार रुपए मिले थे. इस पैसे का इस्तेमाल दंपति ने पक्का मकान बनवाने में किया था. हालांकि खुद सोम सिंह अभी तक ईसाई नहीं बने हैं. उनका कहना है कि ईसाई बनने के लिए दबाव बनाया जाता है.
ये भी पढ़ें: ओमिक्रॉन के कारण कर्मचारियों के DA पर फिर रोक? जानिए हकीकत
सोम सिंह मजदूर हैं और उनकी पत्नी कूड़ा बीनने का काम करती हैं. वो कहते हैं कि उनके गांव के कई गरीब लोगों ने ईसाई धर्म स्वीकार किया है. हालांकि उनमें से कुछ वापस अपने धर्म में लौट गए.
28 वर्षीय कुमार कहते हैं कि धर्मपरिवर्तन के साथ कई जिम्मेदारियां भी आ जाती हैं जिन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता. वो करीब दो साल तक ईसाई रहे. कुमार कहते हैं कि इस दौरान उन्होंने लोगों को विदेश भेजने का लालच देते भी देखा. हालांकि वो कहते हैं कि ईसाई बनने के लिए उन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं मिली.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
रिटायर्ड प्रोफेस और सोशल साइंटिस्ट अमरजीत नारंग कहते हैं धर्मपरिवर्तन का कोई एक कारण नहीं है. वो कहते हैं-पंजाब में करीब 30 फीसदी आबादी पिछड़ी जातियों से है. इनमें से ज्यादातर आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं. इस वजह से उन्हें विदेश ट्रिप ही नहीं कई अन्य तरह के लालच भी दिए जा सकते हैं. ये लोग मुख्य रूप से गरीब लोग हैं जो समाज से तिरस्कृत महसूस करते हैं. इन्हें मूलभूत सुविधाओं का लालच दिया जाता है.
(पूरी स्टोरी यहां क्लिक कर पढ़ी जा सकती है.)
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Conversion, Punjab