मोदी कैबिनेट में शामिल हुए चाय बागान में बाल मजदूर रहे जॉन बार्ला, ऐसा रहा है करियर

पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से जिसे उत्तर बंगाल भी कहते हैं, को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले जॉन बार्ला मजदूरों के हित में कई आंदोलन कर चुके हैं. उन्होंने उत्तर बंगाल के साथ-साथ असम के चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों के हित और अधिकारों के लिए काफी काम किया है. वे कहते हैं कि “गरीबी और मजदूरी को मैंने जिया है, मैं जानता हूं कि मजदूरों को उनका हक मिलना ही चाहिए.”
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जॉन बार्ला अभी मात्र 45 साल के हैं और उन्हें राजनीति में बहुत बड़ा सफर तय करना है. वे बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं और वे अभी भी जमीन से जुड़े हुए हैं. उनका कार्य भी आम जनजीवन और आम आदमी के बीच ही रहा है. वे आम और साधारण लोगों में लोकप्रिय हैं.
कच्ची उम्र में ही देखे थे बड़े सपने
जॉन बार्ला कहते हैं कि “आम मजदूर परिवारों की तरह मैंने भी 14 साल की उम्र में चाय बागान में मजदूरी की थी. चाय बागान की मजदूरी से न पेट भर पाता है और न ही परिवार चल पाता है. इसी उम्र में मैंने बड़े सपने देखे थे और उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास किया. दो दशकों तक मजदूरों को उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष किया. मजदूरों के हक की लड़ाई भी आसान नहीं है. चाय बागानों में मजदूरी से न तो परिवार पल पाता है और न ही ढंग की मजदूरी मिल पाती है. ऐसे में कई कोई बीमार हो जाए या दुर्घटना का शिकार हो जाए तो फिर उस पीढ़ी के लोगों को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाता.”