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वो शख्स जिसने ओम जय जगदीश हरे जैसी अमर आरती की रचना की death anniversary of pandit shardha ram sharma who wrote om jai jagdish hare aarti– News18 Hindi

देश का शायद ही कोई मंदिर या फिर हिंदू आस्थावानों का घर हो, जहां कभी न कभी ओम जय जगदीश हरे आरती के बोल न गूंजे हों. बहुत ही सहज और आसान लेकिन मीठे बोलों वाली इस आरती को बहुत बार लोग फिल्म निर्देशक और कलाकार मनोज कुमार से जोड़ देते हैं क्योंकि ये गाना सबसे पहले उन्हीं की एक फिल्म में आया था, जिसके बाद लोगों की जबान पर चढ़ा. लेकिन असल में इस गाने के रचयिता पंडित श्रद्धाराम शर्मा थे. आज ही के दिन पाकिस्तान के लाहौर (तब भारत) में उनका निधन हुआ था.

गांव का नाम जोड़ लिया अपने नाम से 

सुबह-शाम जिस आरती के बोल आसपास सुनाई पड़ते हैं, उसके रचनाकार पंडित श्रद्धाराम शर्मा का जन्म साल 1837 को पंजाब के लुधियाना के पास एक छोटे से गांव में हुआ था. फिल्लौरी नाम का ये गांव लगभग अनाम था लेकिन आगे चलकर पंडित शर्मा ने इसे अपने नाम से जोड़ लिया. यही कारण है कि उन्हें कलाकारों के बीच फिल्लौरी नाम से भी पुकारा जाता था.

पिता ने कर दी थी खूब नाम कमाने की भविष्यवाणी 

बालक के आसपास काफी धार्मिक माहौल था, जिसका असर उसपर होने लगा. वो कम उम्र में ही कई धार्मिक गंथ्रों के बारे में सहजता से बोलने-बताने लगा. यहां तक कि गांवों में होने वाले धार्मिक उत्सवों में बालक बड़ों के बीच बैठकर बोलता. बेटे की प्रतिभा और धर्म में रुचि देखकर उनके पिता जयदयालु शर्मा, जो कि एक अच्छे ज्योतिषी भी थे, ने कहा था कि उनकी उम्र कम होगी लेकिन उतने ही समय में वे कुछ याद रखने लायक कर जाएंगे.

pandit sharda ram sharma

समाज सुधार के कामों के लिए भी पंडित श्रद्धाराम शर्मा को खूब याद किया जाता है

स्कूल गए बगैर सीखी भाषाएं 

पिता की देखादेखी पंडित शर्मा भी ज्योतिष सीखने लगे. साथ ही उन्होंने फारसी, हिंदी, संस्कृत, अरबी जैसी एकदम अलग तरह की भाषाओं पर महारथ हासिल कर ली. तब उनकी लगभग 11 साल थी. इन सारी भाषाओं को सीखने के लिए वे स्कूल नहीं गए थे और न ही किसी तरह की विधिवत शिक्षा ली थी लेकिन भाषा पर उनकी पकड़ किसी मास्टर जितनी शानदार हो चुकी थी.

कम उम्र में उपन्यास लिखने लगे थे 

पंडित शर्मा ने साल 1866 में गुरुमुखी में ‘सिखों दे राज दी विथिया’ और ‘पंजाबी बातचीत’ जैसी किताबें लिखीं. सिखों दे राज दी विथिया साहित्य जगत में धूम मचाने लगी और जल्द ही उन्हें पंजाबी साहित्य का पितृपुरुष कहा जाने लगा. उनकी भाषा मुश्किल न होकर ऐसी थी, जिसे साहित्य में रुचि रखने वाले आम लोग भी समझ सकें. यही कारण है कि बाद में इस किताब को वहां स्कूल-कॉलेज में भी दिया गया था. किताब में पंजाब की भाषा, संस्कृति, लोक संगीत जैसी बातों की जानकारी थी.

समाज सुधार के कामों में भी आगे

तब देश में कन्या भ्रूण हत्या हुआ करती थी, इसके विरोध में उन्होंने ‘भाग्यवत’ उपन्यास लिखा. इसमें भ्रूण हत्या से लेकर बाल विवाह पर चोट थी. उपन्यास को काशी के पंडित से जोड़ते हुए लिखा गया था ताकि संदेश देश के हर कोने में जा सके.

परंपराओं के खिलाफ बोलने पर काफी बवाल हुआ था 

वो ऐसा दौर था, जब अंधविश्वास को परंपरा मानकर लोग उसपर चला करते और कोई विरोध करे तो उसके खिलाफ हो जाते थे. यही पंडित शर्मा के साथ भी हुआ. समाज का बड़ा हिस्सा उनका विरोध करने लगा. दूसरी ओर एक बड़ा और शिक्षित तबका उनकी बातों के साथ खड़ा हो गया. युवावस्था की शुरुआत में ही पंडित शर्मा का नाम दूर-दूर तक फैल चुका था.

अंग्रजों ने गांव छोड़ने पर लगाई रोक 

वो अंग्रेजी हुकूमत का दौर था. ब्रितानी वैसे तो देश के लोगों को गुलाम बनाकर रखना चाहते थे लेकिन साथ ही वे कहीं-कहीं उनका साथ भी देते थे ताकि लोगों में उनके अच्छा होने का भ्रम बना रहे. यही कारण है कि जब पंडित श्रद्धाराम में ढकोसलों के खिलाफ बोलना शुरू किया तो अंग्रेज भी भड़के हुए लोगों के साथ खड़े हो गए. उन्होंने पंडित शर्मा के पंजाब के गांवों समेत कहीं भी आने-जाने पर पाबंदी लगा दी. हालांकि इसका उल्टा ही असर हुआ. नौजवान पीढ़ी उन्हें पूजने लगी और किसी भी तरह से उनके भाषण सुनने उन्हीं के गांव पहुंचने लगी थी.

30 बरस की उम्र में लिखी वो आरती, जो सबकी जुबान पर है 

इसी दौर में पंडित श्रद्धाराम ने वो आरती लिखी, जो सदी बीतने के बाद भी घर-घर गूंजती है. साल 1870 में ओम जय जगदीश हरे आरती लिखने के दौरान वे लगभग 30 साल के थे. बाद में यही आरती मनोज कुमार की फिल्म पूरब और पश्चिम में आई, जहां से उसने पूरे देश में जगह बना ली.

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