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Women writers in World Book Fair 2023 Mahila Lekhak female hindi writers in Vishwa Pustak Mela

(विमल कुमार/ Vimal Kumar)

अगर यह कहा जाए कि इस बार विश्व पुस्तक मेले में हिंदी की लेखिकाएं पूरी तरह छा गई थीं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. क्योंकि, हिंदी के स्टॉल पर जितने कार्यक्रम हुए उसमें अधिकांश में महिला लेखकों की भागीदारी अधिक रही. हर बड़े बुक स्टॉलों पर किसी न किसी लेखिका की किताबों का या तो लोकार्पण हो रहा था या उन पर बातचीत हो रही थी. कहीं लेखिकाओं के कविता संग्रहों पर बातचीत हो रही थी तो कहीं कहांनी संग्रह पर और कहीं उनके उपन्यासों या उनके किए गए अनुवादों पर. इन कार्यक्रमों का संचालन करने वाली भी अधिकतर महिलाएं ही थीं. इससे पता चलता है कि हिंदी की दुनिया में महिलाओं की सहभागिता लगातार बढ़ती जा रही है और वह दिन दूर नहीं जब भविष्य में वे हिंदी साहित्य का नेतृत्व करेंगी.

वर्ल्ड बुक फेयर का मुख्य आकर्षण साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अलका सरावगी के महात्मा गांधी और सरला देवी चौधुरानी के प्रेम प्रसंगों पर आधारित उपन्यास पर बातचीत रही. इसके अलावा 1857 की नायिका बेगम हजरत महल के उपन्यास के साथ-साथ कवयित्री एवं आलोचक सुजाता की पंडिता रमाबाई पर लिखी गई किताब भी चर्चा में थी. अलका सरावगी की किताब तो पुस्तक मेला से पहले ही आ गई थी लेकिन मेले में उस पर हुई बातचीत पाठकों के बीच चर्चा का विषय थी.

पंडिता रमाबाई पर सुजाता की किताब में कुछ तथ्यों की प्रामाणिकता को लेकर सोशल मीडिया में कुछ विवाद भी हुए. लेकिन यह सच है कि हिंदी में नए तरह के काम अब होने लगे हैं. इस तरह ये तीनों किताबें इस बात का सबूत है कि हिंदी में पाठकों का ध्यान अब कविता कहानी की तुलना में ऐतिहासिक विषयों पर लिखी गई कृतियां पर अधिक जा रहा है. चर्चित इतिहासकार चारु गुप्ता की पुस्तक “जाति और लिंग” ने भी ध्यान खींच. वरिष्ठ कवयित्री अनामिका की “स्त्री मुक्ति की सामाजिकी” भी महत्वपूर्ण किताब रही. विपिन चौधरी देवयानी भारद्वाज और हर्षबाला शर्मा के अनुवाद भी आकर्षण के केंद्र रहे.

पिछले कुछ साल से विश्व पुस्तक मेला में महिला लेखक विशेषकर युवा लेखिकाओं की उपस्थिति बढ़ती जा रही है और उनकी किताबों की चर्चा भी काफी होती जा रही है. लेकिन इस बार का विश्व पुस्तक मेला स्त्री रचना शीलता की दृष्टि से उल्लेखनीय रहा. क्योंकि, मेले के दौरान एक प्रकाशक के स्टॉल पर तो हिंदी की लेखिकाओं की 30 पुस्तकों का लोकार्पण हुआ जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. इससे पता चलता है कि स्त्री लेखन कितनी तादाद में हो रहा है.

शिवाना प्रकाशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में हिंदी की 30 लेखिकाओं को एकसाथ मंच पर इकट्ठा किया गया और उनकी पुस्तकों का लोकार्पण हुआ. जिन लेखिकाओं की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ उनमें ममला कालिया, सुधा अरोड़ा, उषा किरण खान, मनीषा कुलश्रेष्ठ, अल्पना मिश्र, गीताश्री, गीता पंडित, रेनू यादव, सुधा ओम ढींगरा, ज्योति जैन, लक्ष्मी शर्मा, गरिमा मुद्गल, चित्रा राणा राघव आदि शामिल हैं.

21वीं सदी के आरंभिक दो दशक स्त्री लेखन के दशक रहे हैं. अब वे 21वीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश कर रही हैं. इसके अलावा राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, आधार प्रकाशन, सेतु प्रकाशन, लोकभारती प्रकाशन, संवाद प्रकाशन, पुस्तकनामा, सामयिक प्रकाशन, रुख प्रकाशन, वनिका प्रकाशन, हिंदी युग्म आदि के स्टॉल पर हिंदी की अनेक महिला लेखकों की किताबों के लोकार्पण हुए और चर्चाएं हुईं. इनमें वयोवृद्ध लेखिका मृदुला गर्ग, ममता कालिया से लेकर नवोदित लेखिकाओं की किताबें भी शामिल हैं.

पुस्तक मेले में हिंदी की लेखिकाओं में सबसे ज्यादा आकर्षण कविता को लेकर रहा और इस बार में कवयित्रियों के कविता संग्रह और संपादित संग्रह भी सामने आए. समकालीन कवयित्रियों में रोहिणी अग्रवाल, लीना मल्होत्रा, बाबुषा कोहली, विपिन चौधरी, रश्मि भारद्वाज, अनुराधा सिंह वाजदा खान, संगीता गुंदेचा, विजया सिंह, प्रकृति कुकगरती, रूपम मिश्र, प्रज्ञा सिंह और प्रज्ञा तिवारी की किताबें शामिल हैं. इन कवयित्रियों ने हिंदी कविता के परिदृश्य का विस्तार किया है. युवा कवयित्री विपिन चौधरी का चौथा संग्रह “संसार तुम्हारी परछाई” मेले में आया जबकि लीना मल्होत्रा, बाबुषा कोहली, रश्मि भारद्वाज, ज्योति चावला के तीसरे संग्रह सामने आए. 2008 में विपिन का पहला संग्रह आया था और इस तरह 15 साल में उसके चार संग्रह आ गए.

2009 में वाजदा खान का पहला संग्रह आया था. इसके बाद उनका एक और संग्रह आया. पुस्तक मेला में उनके दो काव्य संग्रह “खड़िया” और “जमीन पर गिरी इबारतें” आया.

2012 में लीना मल्होत्रा का पहला संग्रह आया था. दस वर्ष के भीतर उनका तीसरा संग्रह “धुरी से छूटी आह” सेतु प्रकाशन से आया है.

2015 में अपने पहले संग्रह “प्रेम दिल गिलहरी अखरोट” से सबका ध्यान खींचने वाली बाबुषा का यह तीसरा कविता संग्रह “उस लड़की का नाम ब्रह्मलता है” मेले में लोकार्पित हुआ.

रश्मि भारद्वाज ने भी 2016 में एक अतिरिक्त अ नाम से समकालीन कविता में पहचान बनाई थी. 7 साल के भीतर उनका तीसरा संग्रह “घो घो रानी कितना पानी” भी सेतु प्रकाशन से सामने आया है जिसको लेकर लोगों के मन मे गहरी उत्सुकता है.

ज्योति मल्होत्रा की पहचान कहानीकार के रूप में भी रही है पर मूलतः वह कवयित्री है और उनके नए संग्रह “उनींदी रातों का समय से” भी इसकी पुष्टि होती है.

“ईश्वर नहीं नींद चाहिए” से हिंदी कविता में अपनी जगह बनाने वाली अनुराधा सिंह का दूसरा संग्रह “उत्सव का पुष्प नहीं हूं” वाणी प्रकाशन से आया है. प्रसिद्ध आलोचक रोहिणी अग्रवाल भी कविताएं लिखती रही हैं. मेले में उनका कविता संग्रह “लिखती हूँ मन” भी चर्चा में रहा.

रूपम मिश्र का पहला संग्रह “एक जीवन अलग से” लोकभारती से आया है. विजया सिंह के पहला संग्रह “पार्क में हाथी” भी चर्चा में रहा.

प्रसिद्ध कवयित्री सविता सिंह के संपादन में हिंदी की बीस कवयित्रियों का एक संकलन “प्रतिरोध का स्त्री स्वर” नाम से आया. यह इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि अक्सर यह आरोप लगता है कि हिंदी की कवयित्रियां प्रतिरोध की कविताएं नहीं लिखती हैं. सविता ने यह संचयन निकालकर इस मिथ्या अवधारणा का खंडन किया है और एक ऐसा दस्तावेज पेश किया है जिससे स्त्री कविता की शिनाख्त होगी. अब तक ऐसा कोई संकलन हिंदी में नहीं आया था.

हिंदी की वरिष्ठ कवयित्री गगन गिल और युवा आलोचक सुजाता ने स्त्री विमर्श की परंपरा को रेखंकित करते हुए दो महत्वपूर्ण किताबें निकाली हैं.

गगन गिल ने अक्का महादेवी की कविताओं का भाव अंतरण “तेजस्वनी” किया है. कुछ सालों से हिंदी प्रदेश में अक्का महादेवी की कविताओं के प्रति लोगों में दिलचस्पी जागी है. गगन गिल की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन भी मेले में साहित्य प्रेमियों के लिए आकर्षण रहा.

इस तरह समकालीन स्त्री कविता ने 21वीं सदी में एक पड़ाव हासिल किया है और स्त्री कविता पर बातचीत के लिए आधार सामग्री पेश कर दी है. इन कविताओं के परिप्रेक्ष्य में अब स्त्री कविता पर गम्भीर बातचीत होनी चाहिए.

उपन्यास में लवली गोस्वामी का “वनिका”, विजय श्री तनवीर का “सिस्टर लिसा की रान पर रुकी हुई रात” और ममता सिंह का कहांनी संग्रह “किरकिरी” भी आया. रूपा सिंह का पहला कहांनी संग्रह “दुखां दी कटोरी सूखा दी छल्ला” भी आया. इसके अलावा सपना सिंह का कहानी संग्रह भीआकर्षण के केंद्र में रहा. योजना रावत का “पूर्व राग” संग्रह भी मेले में आया. वरिष्ठ लेखिकाओं में ममता कालिया की नई किताब “पचीस साल की लड़की” भी मेले में नजर आई.

चर्चित कथाकार गीताश्री की कई पुस्तकें इस बार वर्ल्ड बुक फेयर में आईं. गीताश्री का उपन्यास ‘कैद बाहर’ राजकमल प्रकाशन से, ‘अंबपाली’ उपन्यास वाणी प्रकाशन से और संस्मरण ‘शहरगोई’ शिवाना प्रकाशन से आया है. ये तीनों ही पुस्तकें मेले में लोकार्पित की गईं.

युवा लेखक सिनीवाली का उपन्यास ‘हेती’ भी अंतिका प्रकाशन के स्टॉल पर लोकार्पित किया गया. ‘हेती’ की कहानी के केंद्र में हैं औषधियों के विशेषज्ञ च्यवन ऋषि और उनकी पत्नी सुकन्या.

सिनेमा पर विजया शर्मा की सत्यजीत रे पर किताब ने भी ध्यान खींचा. मृदुला पंडित की “सिनेमा और यथार्थ” भी एक महत्वपूर्ण पुस्तक रही. गरिमा श्रीवास्तव का ‘उपन्यास का समाजशास्त्र” भी चर्चा के केंद्र में रहा. उनकी किताब “आउशवित्ज” पर भी मेले में अच्छी बातचीत रही. आलोचना में रोहिणी अग्रवाल का “कहांनी का स्त्री समय” एक महत्वपूर्ण कृति रही जिसमें शिवरानी देवी से लेकर आज की लेखिकाओं पर चर्चा है.

अनुवाद में लीनाक्षी फुकन की “नेटिव अमरीका की लोक कथाएं” ने भी ध्यान खींचा. सुनीता डागा, जयश्री पुरवार, नम्रता चतुर्वेदी के अनुवाद की किताब भी मेले में आईं.

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