क्या नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स ने ललन सिंह के बजाए गिरिराज सिंह को बना दिया भूमिहारों का बड़ा नेता?

ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या एनडीए के बड़े नेता केंद्र में दो-दो भूमिहार नेताओं की मौजूदगी नहीं चाहते थे? क्या एनडीए नेताओं को लगा कि भूमिहार जाति से दो मंत्री होने पर और जातियों में नाराजगी शुरू हो जाएगी? क्या बीजेपी नेताओं को लगा कि ललन सिंह के केंद्र में आने से गिरिराज सिंह का भूमिहार जाति में जो कद है वह घट जाएगा और उसका प्रभाव बीजेपी के भविष्य की राजनीति पर पड़ेगा? क्या नीतीश कुमार राजनीतिक समीकरण में ललन सिंह फिट नहीं बैठ रहे हैं और वह सिर्फ मोहरा थे?
बिहार में भूमिहारों का कौन बड़ा नेता?
बता दें कि ललन सिंह और गिरिराज सिंह दोनों एक ही क्षेत्र से आते हैं और दोनों की कर्मभूमि भी एक ही है. गिरिराज सिंह जहां बेगूसराय से सांसद हैं तो वहीं ललन सिंह मुंगेर के सांसद हैं. ललन सिंह पहली बार बेगूसराय से ही लोकसभा के सांसद बने थे. बता दें कि जहां गिरिराज सिंह बीजेपी के लिए हिंदुत्व का एक चेहरा हैं. वहीं, ललन सिंह नीतीश कुमार के हर इच्छा को पूरा करने वाला एक वफादार सहयोगी. ऐसे में क्या यह मान लिया जाए कि गिरिराज सिंह का कद बढ़ने के कारण ललन सिंह का कद घटा दिया गया?

ललन सिंह और गिरिराज सिंह दोनों एक ही क्षेत्र से आते हैं और दोनों की कर्मभूमि भी एक ही है.
श्रीकृष्ण सिंह के बाद भूमिहारों में कौन ज्यादा लोकप्रिय?
बता दें कि बिहार में भूमिहार जाति से श्रीकृष्ण सिंह के आलावा अब तक कोई भी बड़ा नेता नहीं हुआ है, जिसमें मुख्यमंत्री या कद्दावर केंद्रीय मंत्री बनने का सामर्थ हो या जो लोगों का नेता हो. भूमिहार जाति से बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह हुए थे, जिनके पास अभी तक बिहार में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री होने का रिकॉर्ड है. हलांकि, बिहार के मौजूदा सीएम नीतीश कुमार जातिगत राजनीति के गुणा-भाग कर श्रीकृष्ण सिंह का रिकॉर्ड तोड़ने वाले हैं.
केंद्र की राजनीति में भूमिहार कहां?
बहरहाल मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में बिहार में भूमिहार जाति से दो-तीन बड़े चेहरे हैं, जो बिहार से लेकर केंद्र की राजनीति में भी थोड़ा-बहुत साख रखते हैं. जेडीयू से राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, बीजेपी से गिरिराज सिंह और कांग्रेस से अखिलेश सिंह ये तीन नाम हैं. गिरिराज सिंह केंद्र में मंत्री हैं और ललन सिंह फिलहाल हाशिये पर चल रहे हैं. वहीं, अखिलेश सिंह भी कांग्रेस के मौजूदा दौर में अपनी अहमियत सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं.

नीतीश कुमार अब एक अलग सामाजिक समीकरण की तलाश कर रहे हैं. (फाइल फोटो)
नीतीश के सामाजिक समीकरण में फिट नहीं बैठ रहे ललन सिंह?
जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार अब एक अलग सामाजिक समीकरण की तलाश कर रहे हैं, जिसमें ललन सिंह फिट नहीं बैठ रहे हैं. बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, ‘क्योंकि नीतीश कुमार गैर यादव पिछड़ों, अतिपिछड़ा, दलित और महादलित को गोलबंद करने का सामाजिक समीकरण बना रहे हैं और इसी समीकरण पर बीजेपी भी लंबे समय से काम कर रही है. नीतीश कुमार चाहते हैं कि गैर यादव पिछड़ा उनके साथ रहें, लेकिन नीतीश कुमार अगर गैर यादव, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित और महादलित को भी मंत्री बना सकते थे. लेकिन, नीतीश कुमार ने अपने स्वजातीय को केंद्र में मंत्री बना दिया. ऐसे में अगर उन पर जातिगत राजनीति करने का आरोप लग रहा है तो वह गलत नहीं है. यूपीए के शासन काल में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने बहुत समझदारी से अपने कोटे से भूमिहार नेता अखिलेश सिंह को मंत्री बना कर भूमिहार जाति को एक संदेश दिया था. नीतीश कुमार अगर किसी भूमिहार को मंत्री नहीं बनाया तो किसी और जाति के नेता को मंत्री बनाते तो आज उन पर यह आरोप नहीं लगता. नीतीश कुमार पर पहले से ही ब्यूरोक्रेसी में अपने जाति को बढ़ावा देने का आरोप लगते रहा है.’
नीतीश के सामाजिक समीकरण में अब भूमिहार कहां?
पांडेय आगे कहते हैं, ‘बिहार में भूमिहार जाति काफी सशक्त मानी जाती है. नीतीश कुमार भी अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में इस जाति को जबरदस्त तरीके से गोलबंद किया था. भूमिहार जाति के लोग भी लालू के विकल्प के तौर पर नीतीश कुमार को अपना नेता माना था. ललन सिंह उन्हीं दिनों के नीतीश कुमार के सहयोगी हैं. क्योंकि, नीतीश कुमार को लगता है कि इस जाति का रुझान अब बीजेपी की तरफ चला गया है इसलिए नीतीश कुमार अब लव-कुश समीकरण को साधने में लग गए हैं. इसी का नतीजा है कि आरसीपी सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं और केंद्र में मंत्री भी बनाए गए.’

नीतीश कुमार अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में भूमिहार जाति को जबरदस्त तरीके से गोलबंद किया था. (फाइल फोटो)
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नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे कर ललन सिंह ने पिछला लोकसभा चुनाव मुंगेर से लड़ा था और जीते भी. ललन सिंह पिछले दो साल से इस आस में बैठे थे कि वह ताकतवर केंद्रीय मंत्री बनेंगे, लेकिन नीतीश कुमार की सामाजिक समीकरण के कारण उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी और गिरिराज सिंह फिलहाल बीजेपी में ही नहीं बिहार एनडीए में सबसे बड़ा चेहरा बन कर उभरे हैं, हालांकि उनका भी कद इतना बड़ा नहीं है कि वह भूमिहारों के नेता बन सकें.