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OPINION: अरविंद केजरीवाल ने हिमाचल विधानसभा चुनाव में आखिर आत्मसमर्पण क्यों किया?

अजय आलोक

हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को मतदान होने वाला है, जबकि गुजरात में चुनाव की घोषणा भी जल्द हो जाने की उम्मीद है. लेकिन आजकल राजनीतिक हलकों में एक यक्ष प्रश्न तेजी से घूम रहा है कि आखिरकार अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने क्यों इन चुनावों में हिमाचल प्रदेश को छोड़ दिया, जहां उनके जीतने की कुछ संभावना दिख रही थी.

राजनीतिक विश्लेषक मानते थे कि चूंकि हिमाचल प्रदेश पंजाब से सटा हुआ है और दिल्ली से भी हिमाचल प्रदेश, गुजरात के बनिस्बत नजदीक है, इसलिए पंजाब और दिल्ली में आम आदमी की सरकार रहने का फायदा अरविंद केजरीवाल को हिमाचल में अधिक मिल सकता है. तिस पर आम आदमी पार्टी दिल्ली के विकास मॉडल की तारीफ़ करते नहीं अघाती और पंजाब सरकार की भी तारीफ़ करती है. उस पर तुक्का यह कि हिमाचल प्रदेश गुजरात की तुलना में बहुत छोटा प्रदेश है और बड़े राज्यों की अपेक्षा छोटे राज्यों में उलटफेर की संभावना काफी अधिक रहती है.

हिमाचल प्रदेश को यूं छोड़ने के लिए मजबूर क्यों हुए केजरीवाल?
यह केवल संभावना ही नहीं थी बल्कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में ऐसा करके भी दिखाया है, लेकिन अब हिमाचल प्रदेश के चुनाव में इतनी आसानी से सरेंडर कर देना किसी के भी गले नहीं उतर रहा है. इसलिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर केजरीवाल हिमाचल प्रदेश को यूं छोड़ने के लिए मजबूर क्यों हुए? कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पंजाब की केवल तीन महीने पुरानी भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार के शपथ ग्रहण के बाद से ही कई फैसलों को लेकर काफी किरकिरी हो रही है और अरविंद केजरीवाल की पार्टी के खिलाफ काफी नकारात्मकता फ़ैल रही है.

आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी माना है कि पंजाब और दिल्ली में उनकी सरकार की दिनोंदिन नकारात्मक होती जा रही छवि के कारण पार्टी को यह लगने लगा था कि हिमाचल प्रदेश में चुनाव लड़ने से पार्टी को कोई फायदा नहीं मिलने वाला है, उलटे संसाधनों की भी बर्बादी होगी. पंजाब में हिमाचल के हजारों लोग रहते हैं और उन्होंने बड़े नजदीक से पंजाब की ‘आप’ सरकार की असफलता का अनुभव किया है.

इसके साथ ही, हिमाचल प्रदेश के लाखों लोग दिल्ली में भी रहते हैं और कोरोना काल में जिस तरह से उन्होंने केजरीवाल सरकार की कुव्यवस्था देखी और पिछले 8 वर्षों में जिस तरह केजरीवाल सरकार को नकारात्मकता, तुष्टीकरण और घोटालों की राजनीति करते हुए देखा है, इससे उनके मन में आम आदमी पार्टी की नीतियों को लेकर व्यापक असंतोष था. नागरिकों के इस असंतोष ने हिमाचल प्रदेश में अरविंद केजरीवाल के प्रवेश के सारे द्वार बंद कर दिए. इसके बाद अरविंद केजरीवाल को अपने कार्यकर्ताओं के फीडबैक और उनके खिलाफ हिमाचलवासियों के रोष को देखते हुए अपने क़दमों को वापस खींचना पड़ा.

पंजाब का हाल बनी वजह?
चाहे लोगों से सुरक्षा वापस लेने और इसके बाद से ही पंजाब में खून-खराबे की शुरुआत होने का मामला हो, पंजाब में आतंकियों के पकड़े जाने की घटना हो, गैंगवॉर की सुगबुगाहट हो, झूठे वादों की कलई खुलनी हो, पंजाब की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था की बात हो, पंजाब सरकार में भ्रष्टाचार की बात हो, इसने अरविंद केजरीवाल के पैरों तले से राजनीतिक जमीन पूरी तरह से खींच ली है. साथ ही, दिल्ली जहां अरविंद केजरीवाल स्वयं मुख्यमंत्री हैं- वहां के भी आसार कहीं से भी अच्छे दिखाई नहीं दे रहे.

जनता में दिल्ली सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा है. पिछले छह महीनों में हर महीने दो-तीन घोटाले सामने आ रहे हैं. उनके विश्वस्त मंत्री भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं, कई पर जेल की तलवार भी लटक रही है. सत्येंद्र जैन घोटाले में जेल में बंद हैं, इमरान हुसैन जेल में बंद हैं. अरविंद केजरीवाल के एक करीबी ताहिर हुसैन दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपी के रूप में जेल में बंद हैं. शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया पर लगातार तलवार लटक रही है और कई अन्य मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे हैं.

शराब घोटाले के साथ-साथ मोहल्ला क्लीनिक का घोटाला, स्कूल की बिल्डिंग बनाने का घोटाला, बस की खरीद में घोटाला, दिल्ली जल बोर्ड का घोटाला, बिजली बिल का घोटाला – ये सब केजरीवाल सरकार के गले की फांस बने हुए हैं. इस सबके ऊपर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मानना है कि उनकी दिल्ली सरकार के एक मंत्री राजेंद्र पाल गौतम द्वारा सरेआम हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करना, उनके गुजरात के एक और नेता गोपाल इटालिया द्वारा हिंदू संस्कृति और देवी-देवताओं का अपमान करना और स्वयं अरविंद केजरीवाल द्वारा राम मंदिर के खिलाफ बयान देना कहीं न कहीं यह भी आम आदमी पार्टी के हिमाचल प्रदेश को छोड़ने का कारण बना.

उत्तराखंड चुनाव से सबक?
फरवरी-मार्च में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के जीतने की भविष्यवाणी की जा रही थी. शुरू में आम आदमी पार्टी ने जोर भी लगाया था लेकिन चूंकि उत्तराखंड के लाखों लोग दिल्ली में रहते हैं, इसलिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार की असली सच्चाई से उत्तराखंड के लोग काफी जल्दी परिचित हो गए. इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तराखंड में 70 में से 68 सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश में तो उसका हाल और भी बुरा हुआ. आम आदमी पार्टी ने यूपी में 377 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये थे, लेकिन उनके सब के सब उम्मीदवार अपनी जमानत गंवा बैठे. यहां तक कि दिल्ली से सटे नोएडा और गाजियाबाद में भी उनके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई जहां आम आदमी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी. गोवा में भी उनका यही हाल रहा.

राजनीतिक पर्यवेक्षक यह संभावना जता रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल को हिमाचल प्रदेश में घोर पराजय का अंदेशा हो गया था, इसलिए उन्होंने जोरदार शुरुआत करने के बावजूद हिमाचल को छोड़ने में ही भलाई समझी. दूसरी बात यह कि शायद अरविंद केजरीवाल को लगा होगा कि वे हिमाचल प्रदेश में तो सीटें जीत नहीं सकते, लेकिन गुजरात में कांग्रेस की कमजोरियों को देखते हुए शायद वे एक-दो सीटों पर जीत दर्ज कर सकते हैं. हालांकि जिस तरह से टीवी चैनलों पर सर्वे आ रहे हैं, गुजरात के आम आदमी पार्टी के नेताओं के विवादित बयान आ रहे हैं, ऑटो ड्राइवर जैसा घपला जनता के सामने आ रहा है, दिल्ली और पंजाब सरकार के घोटालों की ख़बरें जिस तरह से गुजरात की जनता तक पहुंच रही है, इसने गुजरात में भी अरविंद केजरीवाल की पार्टी के कुछ सीटों पर जीतने की क्षीण संभावना भी एक तरह से ख़त्म कर दी है. अब तो गुजरात में समान नागरिक संहिता का भी मामला चलने लगा है. हालांकि अरविंद केजरीवाल पल-पल अपनी रणनीति बदलने में माहिर माने जाते हैं. अब यह देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल क्या चाल चलते हैं और गुजरात में उनकी दाल थोड़ी-बहुत गलती भी है कि नहीं?

(डिस्क्लेमर: लेखक अजय आलोक राजनीतिक विश्लेषक हैं. ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

Tags: Arvind kejriwal, Assembly Elections 2022, Himachal election, Himachal Pradesh Assembly Elections

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