राष्ट्रीय

दास्तान-गो: प्रदीप कुमार… रुपहले पर्दे का ‘शाह’, अस्ल ज़िंदगी के आख़िर में मुफ़्लिस!

दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…

———–

जनाब, कलकत्ते की रामायण रोड के ठिकाने पर मौज़ूद इमारत ‘जनक बिल्डिंग’ के एक फ्लैट के बारे में ख़्याल कीजिए. यहां ‘शाहाना’ क़द-काठी और शक़्ल-ओ-सूरत वाले एक बुज़ुर्ग मुफ़्लिसी (ग़रीबी) के दिन गुज़ार रहे हैं. इनकी तीन बेटियां हैं और एक बेटा. चारों धनी-मानी और नामी. लेकिन इस वक़्त चारों ने इन्हें अकेला छोड़ दिया है. क्यों? इसकी वज़ह तो वे जानें. पर उनमें से कोई इन्हें देखने नहीं आता. बावजूद इसके कि इन बुज़ुर्ग को लकवा लगा हुआ है. वह बिस्तर से उठ-बैठ नहीं सकते. इनके पास रहने को घर नहीं है. इलाज़ के पैसे नहीं हैं. और ये घर जिसमें इन्हें आसरा मिला है, इसका बंदोबस्त भी कलकत्ते के ही एक कारोबारी प्रदीप कुंडलिया ने किया है. उन्हीं ने इनकी तीमारदारी के लिए एक लड़का भी फ्लैट पर रख छोड़ा है. साथ ही, इलाज़ वग़ैरा के ख़र्चे भी वही उठा रहे हैं. बीच-बीच में जब वक़्त मिलता है, वे यहां इनको देखने आ जाया करते हैं.

कुंडलिया काफ़ी समय से इन ‘शाहाना’ शख़्सियत को जानते हैं. इनकी इज़्ज़त करते हैं. इसीलिए जैसे ही उन्हें पता चला है कि ये मुफ़्लिसी के दिन गुज़ार रहे हैं. तंगी की हालत में हैं. तभी से उन्होंने इनके लिए ये तमाम बंदोबस्त कर दिए हैं. इनकी तीमारदारी के लिए वह जो लड़का लगा हुआ है, वह भी इन्हें ख़ूब इज़्ज़त देता है. ‘ग़ैर’ है, पर अपनों से ज़्यादा ख़्याल रखता है इनका. हर वक़्त. ‘पापाजी’ कहा करता है इन्हें. पर ‘पापाजी’ के पास इस ‘अपने लड़के’ को देने के लिए अब कुछ नहीं बचा है. एक दौर होता था, जब दौलत, शोहरत. नाम, क्या नहीं था इनके पास. लेकिन अब चंद सांसों के लिए भी मोहताज़ हुए जाते हैं. और एक रोज़ वे सांसें भी साथ छोड़ जाती हैं. यही कोई 76 बरस की उम्र थम जाती है वहीं. पीछे उस ‘अपने लड़के’ को अकेला छोड़कर वे इस दुनिया से रुख़्सत हो जाते हैं. साल 2001 का होता है ये. अलबत्ता, उस लड़के ने इन्हें अब तक नहीं छोड़ा है.

इस लड़के का नाम सागर चौधरी बताया जाता है. कहते हैं, कलकत्ते के ‘पार्क सेंटर’ में मौज़ूद एक दफ़्तर आज-कल वे नौकरी किया करते हैं. वहां के कामकाज़ से फ़ारिग होने के बाद वे कहीं साफ़-सफ़ाई का काम भी करते हैं. ताकि उससे कुछ ज़्यादा कमाई हो जाए और इस पैसे से ‘अपने पापाजी’ का जन्मदिन मना सकें. हर साल चार जनवरी को पड़ता है उनके ‘पापाजी’ का जन्मदिन. और जनाब, सागर के इन ‘पापाजी’ का नाम जानते हैं क्या है? प्रदीप कुमार, जो एक दौर में  फिल्मी दुनिया के जाने-माने अदाकार हुआ करते थे. प्रदीप कुमार, जिनके बारे में कहा जाता था कि फिल्मी पर्दे पर शहंशाह, शाहज़दा, राजा, राजकुमार का किरदार अगर कोई असरदार तरीके से निभा सकता है सिर्फ़ वही एक. प्रदीप कुमार, जिन्होंने 1950 और 1960 के बाद वाली दहाईयों के दौरान फिल्मी दुनिया में अपनी एक ‘शाहाना’ सी पहचान क़ायम कर रखी थी.

Pradeep Kumar

प्रदीप कुमार, जो ‘आदिल-ए-जहांगीर’ (1955) और ‘नूर जहां’ (1967) जैसी फिल्मों में मीना कुमारी के साथ बादशाह जहांगीर के तौर पर नज़र आए. जबकि ‘अनारकली’ (1953) फिल्म में उन्होंने शाहज़ादा जहांगीर की सूरत ली, ‘फिल्मी पर्दे की अनारकली’ बीना राय के साथ. उस दौर की एक और नामी अदाकारा माला सिन्हा के साथ भी वे ‘बादशाह’ की सूरत में दिखे. इसी नाम की फिल्म में, साल 1954 में. माला सिन्हा के साथ तो उन्होंने क़रीब आठ फिल्में कीं. इनमें ‘नया ज़माना’, ‘हेमलेट’, ‘डिटेक्टिव’, ‘फैशन’, ‘एक शोला’, ‘दुनिया न माने’, ‘मिट्‌टी में सोना’ शुमार हैं. जबकि मीना कुमारी के साथ सात के करीब फिल्में कीं. पहले जिन दो का ज़िक्र किया, उनके अलावा ‘बंधन’, ‘चित्रलेखा’, ‘बहू-बेगम’, ‘भीगी रात’ और ‘आरती’. साल 1969 की ‘संबंध’ जैसी कुछ फिल्मों में वे असरदार चरित्र भूमिकाओं में दिखे. जबकि आख़िरी दौर में फिर बादशाह.

साल 1983 में जाने-माने फिल्मकार कमाल अमरोही ने ‘रज़िया सुल्तान’ बनाकर रिलीज़ की थी. कहते हैं, इस फिल्म को बनाते वक्त उन्हें इसमें बादशाह के किरदार के लिए प्रदीप कुमार के अलावा किसी दूसरे अदाकार का ख़्याल तक नहीं आया. कुछ इस तरह का असर क़ायम कर रखा था प्रदीप कुमार ने फिल्मी दुनिया में. बांग्ला बोलने वाले कट्‌टर बंगाली बरहमन ख़ानदान से त’अल्लुक़ रखते थे प्रदीप साहब. पर उर्दू और हिन्दी यूं बोलते थे कि इन ज़बानों को ‘अपना कहने वाले’ भी एक बार उनसे सीखने, उन्हें सुनने को बेचैन हो जाएं. बताते हैं, प्रदीप कुमार ने फिल्मों में बादशाहों, शहंशाहों, शाहज़ादों के किरदार अदा करने को, उनमें जान डालने के लिए ख़ास तौर पर हिन्दी, उर्दू सीखी हुई थी. ताकि पर्दे पर उन्हें देखने-सुनने वालों को भरम न बैठे कभी कोई. और सच में, उनकी क़द-काठी, शक़्ल-ओ-सूरत, शख़्सियत सब कुछ ‘शाहाना’ ही लगी हमेशा.

हालांकि यह पहचान क़ायम करने में प्रदीप साहब के लिए कोई आसानी हुई होगी, ऐसा भी नहीं है. जैसा पहले ही बताया. कट्‌टर बंगाली बरहमन ख़ानादान से त’अल्लुक़ था उनका. घरवालों ने शीतल बटबयाल नाम दिया था. फिल्में देखने का शौक़ कम उम्र में ही लग गया. बंगाल से ही त’अल्लुक़ वाले ‘दादा मुनि’ अशोक कुमार की पिक्चरें देखा करते थे. बस, वहीं से ख़ुद भी ये मन हो गया कि फिल्मी दुनिया में जाना है. स्कूल, कॉलेज में नाटकों वग़ैरा में हिस्सा लेने लगे. इसके बाद फिर एक रोज जब 17-18 बरस की उम्र रही होगी (साल 1925 की पैदाइश), तो पहली बार घर में ज़िक्र किया, ‘फिल्मों में जाना चाहता हूं’. इतना सुनना था कि घर में मानो तूफ़ान आ गया. वालिद सख़्त नाराज़ हो गए. लेकिन ये टस से मस न हुए. वालिद की, घरवालों की नाराज़गी मोल लेकर भी फिल्मी दुनिया की तरफ़ क़दम बढ़ा दिए. ख़ुद प्रदीप साहब ने ही कुछेक इंटरव्यू में यह ज़िक्र किया है.

Pradeep Kumar

फिल्मों का जाना-पहचाना चेहरा रहीं तबस्सुम के साथ बातचीत के दौरान एक मर्तबा प्रदीप साहब ने बताया था, ‘मैंने असिस्टेंट कैमरामैन के तौर पर फिल्मी सफ़र शुरू किया. फिर मशहूर फिल्मकार देबकी बोस मुझे कैमरे के सामने ले आए. उनकी फिल्म ‘अलकनंदा’ में जब मैंने काम किया, वहां से मुझे लोगों ने नोटिस करना शुरू किया. इस वक़्त मेरी उम्रकोई 19-20 बरस रही होगी. इसके बाद मैं बंबई आ गया. वहां शशधर मुखर्जी और दादा-मुनि ने फिल्मिस्तान स्टूडियो शुरू किया था. उनके साथ जुड़ गया. उस बैनर तले मेरी शुरुआती तीन फिल्में- ‘आनंद मठ’ (1952), ‘अनारकली’ (1953) और ‘नागिन’ (1954) जब रिलीज़ हुईं तो बस, वहां से गाड़ी चल पड़ी. उसके आगे जो कहानी है, वह तो सबको पता है ही’.  जी जनाब, यहां से प्रदीप साहब का जो सफ़र शुरू हुआ, उसमें एक दौर ऐसा भी आया, जब उनकी साल में 10 फिल्में तक रिलीज़ हो रही थीं.

हालांकि, इसके बावज़ूद कुछ लोग कहा करते हैं कि ‘फिल्मी पर्दे के शाह’ प्रदीप साहब कभी ‘बॉक्स ऑफ़िस के शहंशाह’ नहीं बन सके. मतलब उनकी फिल्मों ने उनके नाम, उनकी अदाकारी, उनके चेहरे के दम पर पैसे नहीं कमाए. कहा ये भी जाता है कि उन्होंने फिल्मों से जितनी मशहूरियत कमाई, उतनी दौलत नहीं कमा सके. कहते यूं कि भी हैं उनके बच्चों ने आख़िरी वक़्त में उन्हें मरने के लिए बेसहारा छोड़ दिया. जबकि उनकी औलादों में एक बीना मुखर्जी तो फिल्मों, धारावाहिकों वग़ैरा में काम कर के ख़ासा नाम और पैसा बना चुकी थीं. लेकिन उन्होंने भी अपने वालिद की आख़िरी दौर में मदद नहीं की. और तो और प्रदीप साहब की रुख़्सती की तारीख़ का मसला भी यूं बना हुआ है कि ‘जितने मुंह उतनी बातें’. कोई-कोई यह तारीख़ 28 अक्टूबर बताया करता है. कुछ लोगों का ख़्याल तीन नवंबर पर ठहरता है. तो बहुत से लोग 27 अक्टूबर बताया करते हैं.

इस दास्तान के लिए प्रदीप साहब के इंतिक़ाल की इसी तारीख़, 27 अक्टूबर को दुरुस्त माना गया है क्योंकि ज़्यादातर लोग इसे ही सही मानते हैं. इनमें फिल्मी दुनिया से जुड़े लाेग तो हैं ही, प्रदीप साहब को जानने वाले कुछ लोगों की पुख़्तगी भी है. अलबत्ता, उन कही-सुनी बातों की पुख़्तगी का मसला रह जाता है अब भी कि उनकी औलादों ने आख़िर अपने बाप  को आख़िर वक़्त में यूं बेसहारा क्यूं छोड़ दिया? उन्होंने फिल्मी दुनिया से जो, जितनी भी दौलत, पहचान, शोहरत कमाई, वह आख़िरी वक़्त में काम क्यूं नहीं आ सकी? आख़िर हुआ क्या ऐसा कि ‘फिल्मी पर्दे का शाह’ अस्ल ज़िंदगी के आख़िरी दौर में मुफ़्लिस की तरह रुख़्सत हुआ? क्यूं आख़िर आज भी एक ‘ग़ैर’ (सागर चौधरी) को, यूं साफ़-सफाई के काम से पैसे जुटाकर हर साल अपने ‘प्रदीप पापाजी’ का जन्मदिन मनाना पड़ता है? ऐसे तमाम सवाल बने हुए हैं प्रदीप साहब की ज़िंदगी से जुड़े. इन पर जमी धुंध साफ़ की जानी चाहिए. बेहतर हो कि उनके घरवाले, उन्हें नज़दीक से जानने वाले ये बीड़ा उठाएं.े बीड़ा उठाएं.

आज के लिए बस इतना ही. ख़ुदा हाफ़िज़.

Tags: Death anniversary, Hindi news, News18 Hindi Originals

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
VIVA99 adalah salah satu deretan daftar situs judi online terpercaya dan paling gacor yang ada di indonesia . VIVA99 situs agen judi online mempunyai banyak game judi slot online dengan jacpot besar, judi bola prediksi parlay, slot88, live casino jackpot terbesar winrate 89% . Mau raih untung dari game judi slot gacor 2022 terbaru? Buruan Daftar di Situs Judi Slot Online Terbaik dan Terpercaya no 1 Indonesia . VIVA99 adalah situs judi slot online dan agen judi online terbaik untuk daftar permainan populer togel online, slot88, slot gacor, judi bola, joker123 jackpot setiap hari