There is no hope of quick relief from stubborn inflation, prices of cereals will increase by about 15 percent| जिद्दी महंगाई से जल्द राहत की उम्मीद नहीं, अनाज की कीमतें लगभग 15 फीसदी बढ़ेंगी


अगर आप सोच रहें है कि जिद्दी महंगाई से आने वाले दिनों में राहत मिल जाएगी तो यह संभव नहीं है। दरअसल, क्रिसिल ने एक रिपोर्ट में कहा है कि पिछले पांच साल के औसत की तुलना में अगले वित्त वर्ष में अनाज की कीमतें 14-15 फीसदी अधिक रहने की उम्मीद है। अगर वजह की बात करें तो जलवायु परिवर्तन की अनियमितता, मजबूत वैश्विक मांग और घरेलू मांग में वृद्धि है। इसका सीधा असर महंगाई पर देखने को मिल सकता है। महंगाई और बढ़ सकती है। चालू वित्त वर्ष में भी, पहले दस महीनों में अनाज की कीमतें सालाना आधार पर काफी बढ़ी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां गेहूं और धान की कीमतें 8-11 फीसदी बढ़ी हैं, वहीं मक्का, ज्वार और बाजरा की कीमतें 27-31 फीसदी बढ़ी हैं।
गेहूं का उत्पादन अधिक रहने की उम्मीद
क्रिसिल को मौजूदा रबी सीजन में गेहूं का उत्पादन अधिक रहने की उम्मीद है। जनवरी 2023 (अप्रैल 2020 में घोषित मुफ्त खाद्यान्न योजना) से निर्यात पर निरंतर प्रतिबंध और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को बंद करने के बावजूद, जो पिछले वर्ष की तुलना में स्टॉक की स्थिति को आरामदायक स्तर तक लाने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उपरोक्त उपाय वित्त वर्ष 2024 के लिए गेहूं की कीमतों पर दबाव डालेंगे। क्रिसिल के अनुसार, धान, मक्का, बाजरा और ज्वार जैसी प्रमुख खरीफ फसलों के लिए, अगले वित्त वर्ष के लिए भी उत्पादन अधिक होने का अनुमान है, बशर्ते मानसून सामान्य और अच्छी तरह से फैला हुआ हो।
गांवों में महंगाई की तुलना में नहीं बढ़ रही है मजदूरी
गांवों में मजदूरी में वृद्धि की दर बढ़ती महंगाई की तुलना में कम है और सरकार को छोटे कस्बों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की मदद के लिये नीतिगत समर्थन जारी रखना चाहिए। साख के बारे में सूचना देने वाली कंपनी क्रिफ हाई मार्क की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। इसमें कहा गया है कि गांवों में मजदूरी महंगाई के हिसाब से नहीं बढ़ रही है। इसीलिए नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप की जरूरत है। इसमें कहा गया है कि महंगाई बढ़ने से, गांवों में वास्तविक मजदूरी घटी है और मांग सुस्त हुई है। ऐसे में सरकार और नीति निर्माताओं के लिये जरूरी है कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में समर्थन देना जारी रखे।’’ रिपोर्ट के अनुसार, बीते वर्ष 2022 की पहली छमाही में ग्रामीण मुद्रास्फीति शहरों की महंगाई की तुलना में अधिक रही है। गांवों में खपत कम हुई है।