मृत्युदंड को ‘अनावश्यक’ बनाने का हमारा प्रयास नहीं, जानें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि जिन मामलों में न्यायिक जांच के बाद आदेश दिए गए हैं, उनमें मृत्युदंड (Death penalty) से बचने के तरीके तलाशना न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता से समझौता करना होगा. कोर्ट ने एक बेहद अहम मामले में यह बात फैसला सुनाते हुए कही है. सुप्रीम कोर्ट ने साढ़े सात साल की मानसिक रूप से बीमार और दिव्यांग बच्ची के साथ 2013 में हुए बलात्कार और उसकी हत्या के दोषी को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा है. तीन सदस्यीय पीठ ने मृत्युदंड दिए जाने के राजस्थान हाई कोर्ट के 29 मई, 2015 के आदेश को बरकरार रखा है.
इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि यह अपराध अत्यंत निंदनीय है और अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है. जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने सजा के मुद्दे पर मृत्युदंड के दोषियों द्वारा अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले कानूनी तर्कों पर भी टिप्पणी की.
मौत की सजा देने से बचना गलत, निष्पक्षता से समझौता नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट का यह प्रयास कभी नहीं रहा है कि किसी भी तरह से मौत की सजा को सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए निरर्थक और अस्तित्वहीन बनाया जाए. जिन मामलों में न्यायिक जांच के बाद आदेश पारित किए गए हैं, उनमें मौत की सजा देने से बचने के तरीके तलाशना न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता से समझौता करने जैसा होगा.
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Tags: Death penalty, Supreme Court
FIRST PUBLISHED : June 25, 2022, 00:08 IST