कोलकाता: कभी बड़े जल भंडार वाला क्षेत्र था, अब हर साल 1 फीट कम हो रहा है भूजल

कोलकाता. एक अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि कोलकाता में भूजल सालाना करीब एक फीट नीचे गिर रहा है. शोध में कहा गया है कि कोलकात में भूजल की ज्यादा निकासी ने एक बड़ा भूगर्भ कुंड (trough) बन गया है जो शहर के कुल क्षेत्रफल से लगभग 30 प्रतिशत बड़ा है. स्प्रिंगर नेचर जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल अर्थ साइंसेज (Springer Nature’s Journal of Environmental Earth Sciences) में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि भूजल की अंधाधुंध निकासी के कारण शहर के भूजल का तीन-चौथाई हिस्सा आंशिक या पूरी तरह खारा हो गया है. ये अध्ययन हुगली नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर कोलकाता और हावड़ा शहरों और उनके उपनगरीय क्षेत्रों को कवर करते हुए किया गया.
राज्य के सिंचाई और जलमार्ग विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की है कि भूजल के स्तर में गिरावट पार्क स्ट्रीट पर सालाना लगभग 0.33 मीटर (लगभग एक फुट) और उसके बाहर 0.11 मीटर (लगभग चार इंच) थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले ढाई दशकों में भूजल की अधिक निकासी के कारण दक्षिण-मध्य कोलकाता में भूजल का कुंड 266 वर्ग किमी. बढ़ गया है. इसके कारण मीठे पानी में गिरावट आई है. जबकि मिश्रित और खारे पानी की मात्रा बढ़ी है. एक विशेषज्ञ ने कहा कि भूजल निकासी का असर दक्षिण कोलकाता में अधिक है क्योंकि इसमें उत्तरी कोलकाता की तुलना में कहीं ज्यादा बहुमंजिला इमारतें हैं. इनमें से अधिकांश इमारतें भूजल पर निर्भर हैं.
अध्ययन में शामिल प्रमुख वैज्ञानिक सिकदर ने कहा कि हमने उस क्षेत्र को एक कुंड (trough) के रूप में परिभाषित किया है, जहां भूजल स्तर सतह से कम से कम 15 मीटर नीचे है. शहर के नीचे का ट्रफ, शहर के सतह क्षेत्र से कम से कम 30 प्रतिशत बड़ा है. कोलकाता, पारंपरिक रूप से एक विशाल भूजल भंडार वाला शहर माना जाता रहा है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे पानी की कमी वाला शहर बनता जा रहा है. उन्होंने कहा कि भूगर्भ में एक बड़े भूजल कुंड के निर्माण के कारण भूजल अब पश्चिम से पूर्व की ओर बहता है. जिसके कारण हावड़ा के खारे भूजल से कोलकाता का भूजल भी खारा हो गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर नब्बे के दशक के मध्य के साथ तुलना करें तो ताजे पानी के क्षेत्र में 74 प्रतिशत की कमी और मिश्रित और खारे पानी के क्षेत्र में क्रमशः 42 प्रतिशत और 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोलकाता में 1980-2014 की अवधि के दौरान निर्मित क्षेत्र 100 से बढ़कर 162 वर्ग किमी. हो गया था. बढ़ते कंक्रीटीकरण ने शहर के वाटर-रिचार्जिंग के इलाके को हड़प लिया है.
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