कोरोना के दौरान आखिर क्यों प्रेग्नेंसी के लिए मना कर रहे हैं हेल्थ एक्सपर्ट


कोरोना काल में प्रेग्नेंसी को टालने की सलाह दे रहे हैं एक्सपर्ट.
सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. इंद्रा सतपाल बताती हैं कि पिछले साल आई कोरोना की लहर से लेकर अभी दूसरी लहर के बीच में महिलाओं की गर्भावस्था को लेकर कठिनाइयां सामने आई हैं. कई मामलों में ऐसा हुआ है कि गर्भवती महिलाओं को गर्भधारण के दौरान जिन जांचों और इलाज की जरूरत होती है वह नहीं मिल पाया है.
नई दिल्ली. देश में कोरोना के मामले धीरे-धीरे कम हो रहे हैं. हालांकि अभी भी तीसरी लहर के खतरे को लेकर वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ आगाह कर रहे हैं. इसी के साथ अब स्वास्थ्य विशेषज्ञ महिलाओं की प्रेग्नेंसी को लेकर भी अपनी राय दे रहे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के इस दौर में प्रेग्नेंसी से बचना आने वाली पीढ़ी के लिए बेहतर साबित हो सकता है.
तीरथराम अस्पताल की सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. इंद्रा सतपाल बताती हैं कि पिछले साल आई कोरोना की लहर से लेकर अभी दूसरी लहर के बीच में महिलाओं की गर्भावस्था को लेकर कठिनाइयां सामने आई हैं. कई मामलों में ऐसा हुआ है कि गर्भवती महिलाओं को गर्भधारण के दौरान जिन जांचों और इलाज की जरूरत होती है वह नहीं मिल पाया है.
डॉ. इंद्रा कहती हैं कि कोरोना काल के दौरान गर्भवती महिलाओं में चिड़चिड़ापन, अवसाद और मूड़ स्विंग की समस्या पहले से ज्यादा बढ़ी है जिसका सीधा-सीधा असर उनकी सेहत के साथ ही बच्चे के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. लॉकडाउन और तमाम प्रतिबंधों के अलावा आर्थिक स्थिति पर पड़े प्रभाव ने भी महिलाओं को नियमित चेकअप और अन्य जरूरी गतिविधियों से दूर रखा है जो आने वाले बच्चों के लिए लाभदायक नहीं है. वहीं कई जगहों पर ऐसे कई मामले सामने आए जब कोरोना काल में इमरजेंसी की स्थिति में भी महिलाओं को सुविधा नहीं मिल पाई और उन्हें मौत का शिकार होना पड़ा है.
वे कहती हैं कि कोरोना के इस एक साल के अंदर गर्भ धारण के बाद जरूरी चेकअप कराने वाली गर्भवती महिलाओं की संख्या में भी कमी आई है. जिसका दूरगामी असर हो सकता है और आने वाले बच्चों में कोई भी कमी सामने आ सकती है. कई रिसर्च में भी ये संभावना जताई गई है कि अगर गर्भावस्था के दौरान जांचें और तमाम जरूरी इलाज नहीं मिलता है तो संतान में कमी की संभावना रहती है जो कि किसी भी नए जीव में नहीं होनी चाहिए, जिससे कि न केवल एक जीव बल्कि पूरा परिवार तक प्रभावित हो सकता है.वहीं पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. सतपाल कहते हैं कि जब भी कोई महामारी आती है तो सभी के लिए मुसीबतें लेकर आती है ऐसे में प्रेग्नेंसी या प्रेग्नेंट महिलाएं इससे कैसे बच सकती हैं. यह चूंकि सभी आम लोगों के लिए कठिन समय है ऐसे में संसार में आने वाले नए जीव के लिए और भी कठिन हो सकता है. लिहाजा ये बहुत संभव नहीं है लेकिन फिर भी अगर इस समय कम से कम छह महीने और प्रेग्नेंसी से बचा जाए तो बेहतर हो सकता है.
डॉ. सतपाल कहते हैं कि अभी कोरोना की तीसरी लहर का भी खतरा है. जिसे बच्चों के लिए खतरा भी बताया जा रहा है. साथ ही मामलों के बढ़ने की संभावना जताई जा रही है. अब जबकि सामान्य लोगों के लिए संकट की आशंका है तो गर्भवती महिलाएं जिन्हें कभी कभी इमरजेंसी हो सकती है, उनके लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. अभी जैसे भी संभव हो नियोजन के उपाय किए जा सकते हैं.
गर्भवती महिलाओं की मौतों को लेकर आईसीएमआर ने जारी की है रिपोर्ट
बता दें कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की ओर से हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की गई है. जिसमें बताया गया है कि कोरोना की दूसरी लहर में गर्भवती महिलाओं के साथ ही प्रसव के बाद महिलाओं की मौतों की संख्या बढ़ी है.
आईसीएमआर की ओर से यह स्टडी पहली और दूसरी लहर को लेकर की गई है. जिसमें कहा गया है कि पहली लहर में सिम्टोमैटिक केस 14.2 फीसदी थे वहीं दूसरी लहर में ये बढ़कर दोगुने 28.7 फीसदी हो गए. वहीं पहली लहर में मृत्यु दर 0.7 फीसदी थी तो दूसरी में बढ़कर 5.7 फीसदी हो गई. वहीं दोनों में मेटर्नल डेथ दो फीसदी रही है.
आईसीएमआर ने यह स्टडी पहली लहर की 1143 और दूसरी लहर की 387 महिलाओं पर की है.