Bodh gaya me bejuban janwara ki masiha bani boddh bhikshuni awara kutton ke liye bodhh mahila har din banati hain khana nodvm

गया. ढाई साल पहले बोधगया में घूमने पहुंची 52 वर्षीय बौद्ध भिक्षुणी आज यही की होकर रह गई है. बोधगया के लोग इन्हें सही से नहीं जानते हो, लेकिन सड़क में घूमने वाले दो सौ से अधिक आवारा कुत्ते इनके आने का समय बखूबी जानते हैं. भिक्षुणी के क्षेत्र में पहुंचने का आभास इन कुत्तों को दूर से ही हो जाता है. इन बेजुबान जानवरों को यह भिक्षुणी ढाई साल पहले जानती भी नहीं थी. बता दें कि हिमाचल प्रदेश के रेवासा गांव की रहने वाली भिक्षुणी ग्यांग लह्मो ढाई साल पहले भगवान बुद्ध के दर्शन करने के लिए बोधगया पहुंची थी.
भ्रमण के दौरान ही कोविड-19 का संक्रमण चारो ओर बढ़ा और पूरे देश में लॉकडाउन लग गया. उसी समय ग्यांग लह्मो ने देखा की बोधगया के सभी व्यापार स्थलों में ताले लटकने लगे. यहां तक कि खाने-पीने की दुकानोंं का भी शटर गिर गया. इस बंदी के दौरान लोग अपने-अपने घरों में बंद होकर रह गए. लोग कही से भी मांगकर अपना भोजन जुगाड़ कर ले रहे थे. लेकिन इस बंदी के कारण बोधगया के सड़कों में घूमने वाले आवारा कुत्तों को एक टाइम का भोजन भी नसीब नहीं हो पा रहा था.
कई कुत्ते खाना नहीं मिलने के कारण कमजोर होते जा रहे थे. यह नजारा देख भिक्षुणी के अंदर करुणा का भाव जाग गया. इसके बाद उसे भगवान बुद्ध के द्वारा सिखाए गए दया, करुणा की बातें याद आने लगी. भिक्षुणी इन आवारा कुत्तों के लिए लॉकडाउन से अभी तक प्रतिदिन दो बार खुद से खाना बनाकर लाती हैं. ग्यांग लह्मो ने खाना ले जाने के लिए एक रिक्शा चालक को रखा हुआ. इसी रिक्शे से वह खाना लेकर आती है और चौक-चौराहे पर इन कुत्तों को खाना खिलाती है. पहले कुत्ते इससे डरकर भाग जाते थे. कई बार तो खाना खिलाने के दौरान भिक्षुणी को कुत्तों ने काट भी लिया है.
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