Padma Shri Awardee Sindhutai Sapkal passes away know her life journey

मुंबई: अनाथ बच्चों की मां कही जाने वाली और मशहूर समाज सेवी सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) का निधन हो गया. मंगलवार को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. सिंधु सपकाल को अक्सर सिंधुताई या मां कहकर पुकारा जाता था. उन्होंने करीब 2 हजार अनाथ बच्चों का पालन-पोषण किया. उत्कृष्ठ समाज सेवा के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री (Padma Shri) से सम्मानित किया था.
महाराष्ट्र में एनसीपी नेता नवाब मलिक (Nawab Malik) ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, मेरी सिंधुताई सपकाल, एक वरिष्ठ समाज सेवी का आज निधन हो गया. यह बेहद दुखद खबर है. उनके जाने से समाज को एक गहरी क्षति हुई है. हम उनके परिवार के प्रति शोक संवेदना प्रकट करते हैं.
महाराष्ट्र के वर्धा में एक गरीब परिवार में पैदा हुईं, सिंधुताई देश में जन्मी हुई उन करोड़ों लड़कियों में से एक थीं जिन्हें जन्म के बाद से भेदभाव का शिकार होना पड़ा. उनकी मां उन्हें स्कूल भेजने के खिलाफ थी लेकिन उनके पिता उन्हें स्कूल भेजकर पढ़ना चाहते थे. जब वे 12 वर्ष की थी तब उनकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से कर दी जो उम्र में उनसे 20 साल बड़ा था.
बचपन से भेदभाव की शिकार हुई थीं सिंधुताई
बाल विवाह के बाद उन्हें अपने पति के साथ ससुराल में भेज दिया गया. जहां उनके पति उनके साथ ज्यादती करते थे. इस दौरान ही सिंधुताई ने महिला से जुड़े अधिकारों के लिए लड़ाई शुरू कर दी. वन विभाग और जमींदारों द्वारा महिलाओं के शोषण के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई.
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महज 20 साल की उम्र में वे चौथी बार गर्भवती हुईं. गांव में यह अफवाह फैलाई गई कि उन्होंने अपने पति के साथ बेवफाई की. इसके बाद उनके पति ने गर्भावस्था के दौरान उनके साथ मारपीट की. खून से लथपथ और घायल अवस्था में उन्होंने गौशाला की छत के नीचे बच्चे को जन्म दिया.
अनाथ बच्चों की परवरिश का उठाया जिम्मा
सिंधु ताई ने अपने मायके लौटने की कोशिश की लेकिन उनकी मां ने उन्हें हर बार अपमानित करके लौटा दिया. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार बच्चे का पालन-पोषण के लिए उन्होंने भीख मांगना शुरू कर दिया. अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए कई बार उन्होंने कब्रिस्तान में रात गुजारी. यह वह समय था जब सिंधुताई ने कई अनाथ बच्चों के साथ वक्त बिताया. इस दौरान उन्होंने कई अनाथ बच्चों की जिम्मेदारी ली.
साल 1970 में उन्होंने अपने शुभ चिंतकों की मदद से अमरावती के चिकालदारा में पहला आश्रम खोला और अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों की परवरिश में समर्पित कर दिया. इसके बाद से उन्हें माई पुकारा जाने लगा. उनकी परवरिश में रहकर बड़े हुए कई बच्चों को अच्छी शिक्षा मिली और वे डॉक्टर, वकील व अन्य अधिकारी बने.
समाज सेवा के क्षेत्र में अपने इस अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें 270 से अधिक विभिन्न पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया. इनमें नारी शक्ति सम्मान और पद्म श्री शामिल है.
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Tags: Maharahstra, Padma Shri, Social Welfare