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Economic Survey: विनिवेश के मामले में फिसड्डी रही सरकार, सिर्फ 9,330 करोड़ ही जुटा पाई Economic Survey: Government lagging behind in disinvestment case, could only raise Rs 9,330 crore

Disinvestment - India TV Paisa
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Highlights

  • विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का टारगेट था
  • 24 जनवरी, 2022 तक सरकार विनिवेश से सिर्फ 9,330 करोड़ रुपये ही जुटा पाई
  • विनिवेश लक्ष्य चुकने की बड़ी वजह कोरोना महामारी भी रही

नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रुपये की कमाई का टारगेट रखा था। लेकिन, 24 जनवरी, 2022 तक सरकार विनिवेश से सिर्फ 9,330 करोड़ रुपये ही जुटा पाई। हालांकि, विनिवेश लक्ष्य चुकने की बड़ी वजह कोरोना महामारी भी रही है। कोरोना सरकारी कंपनियों के विनिवेश की राह में बड़ी अड़चन बनी रही है। गौरतलब है कि सरकार ने बीपीसीएल, एयर इंडिया, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर कॉरपोरेशन, आईडीबीआई बैंक, बीईएमएल जैसी कंपनियों में स्ट्रैटेजिक डिसइनवेस्टमेंट 2021-22 के दौरान पूरा कर लेने की बात कही थी लेकिन जिसमें एयर इंडिया ही बड़ा नाम है जिसे सरकार विनिवेश कर पाई। 

9 सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश पूरा

सरकार ने 2016 से चुने गए 36 में से केवल 8 पीएसयू का विनिवेश 2021 तक पूरा कर पाई है। जिन आठ सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश पूरा हो चुका है, उनमें हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड, एचएससीसी इंडिया लिमिटेड, नेशनल प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड, ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड, नॉर्थ-ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड और कामराजर पोर्ट शामिल है। वहीं, 2022 में अभी एयर इंडिया का विनिवेश पूरा हुआ है। 

विनिवेश लक्ष्य चुकने का क्या असर होगा?

देश के जाने-माने अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने इंडिया टीवी को बताया कि विनिवेश लक्ष्य चुकने से सरकार को वित्तीय चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। कोरोना संकट के कारण सरकार पहले से ही कर राजस्व में बड़ी कमी और खर्चे बढ़ने को बोझ उठा रही है। इस बीच विनिवेश से सिर्फ 9,330 करोड़ रुपये जुटाने से जरूरी खर्च के लिए संसाधन जुटाने में मुश्किल आ सकती है। इसके साथ ही राजकोषीय घाटा भी बढ़ सकता है। अगर राजकोषीय घाटा बढ़ता है है तो वैश्विक रेटिंग एजेंसियां रेटिंग गिरा सकती है। इसका असर वि​देशी निवेश पर भी देखने को मिल सकता है। आईएमएफ और विश्व बैंक से कर्ज जुटाना मुश्किल हो सकता है। कुल मिलाकर विनिवेश लक्ष्य से चुकना अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं है। 

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