आखिर केंद्र क्यों नहीं चाहता जाति आधारित जनगणना, क्या है दिक्कत । explainer why central government never do census on caste based except sc and sc– News18 Hindi

सवाल – जनगणना में किस तरह से जातिगत डाटा प्रकाशित होता रहा है?
– वर्ष 1951 से 2011 तक भारत में हर 10 साल पर जनगणना का काम होता रहा है. लेकिन हर जनगणना में एससी और एसटी यानि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना के डाटा अलग से दिए जाते हैं, लेकिन दूसरी जातियों के नहीं. अलबत्ता 1931 तक भारत में जो जनगणना हुई तो जातिगणना आधारित जरूर थी.
1941 में जातिगत आधार पर डाटा इकट्ठा किया गया लेकिन उसे प्रकाशित नहीं किया गया. हालांकि इससे ये अंदाज लगाना थोड़ा मुश्किल हो गया कि देश में ओबीसी यानि अन्य पिछड़ा जातियों की जनसंख्या कितनी है. ओबीसी में कितने वर्ग हैं और अन्य में कितने. मंडल आयोग ने अनुमान लगाया था कि देश में ओबीसी की आबादी करीब 52 फीसदी है. कुछ अन्य लोग इसका अंदाज नेशऩल सैंपल सर्वे के आधार पर लगाते हैं जबकि राजनीतिक पार्टियों के पास लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसका अलग अनुमान रहता आया है.
कितनी बार जाति आधारित जनगणना की मांग की जाती रही है?
– हर जनगणना से पहले इस तरह मांग की ही जाती रही है. संसद के रिकॉर्ड बताते हैं कि इसे लेकर संसद में बहस होती है और सवाल उठते रहे हैं. खासकर ये मांग उन लोगों की ओर से उठाई जाती रही है जो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) या शोषित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, वहीं सवर्ण जातियों से आने वाले लोग इसका विरोध करते हैं.

01 अप्रैल को नेशनल कमीशन फार बैकवर्ड क्लास ने भी सरकार से मांग की 2021 की जनगणना में ओबीसी आबादी का डाटा भी इकठ्ठा किया जाए. इस तरह की एक याचिका हैदराबाद के जी मलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की, जो वहां फिलहाल लंबित है.
इस बार भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जीतन मांझी और केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री अठावले चाहते हैं कि जनगणना में जातियों की भी अलग से गणना हो. बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव पंकजा मुंडे भी इसकी मांग ट्विटर पर पिछले दिनों कर चुकी हैं. जनवरी में महाराष्ट्र विधानसभा में इस तरह का एक प्रस्ताव भी पास किया गया था कि केंद्र 2021 की जनगणना में जातियों का डाटा भी इकट्ठा करे.
01 अप्रैल को नेशनल कमीशन फार बैकवर्ड क्लास ने भी सरकार से मांग की 2021 की जनगणना में ओबीसी आबादी का डाटा भी इकठ्ठा किया जाए. इस तरह की एक याचिका हैदराबाद के जी मलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की, जो वहां फिलहाल लंबित है.
इस पर केंद्र सरकार का स्टैंड क्या है?
लोकसभा में सरकार के हालिया बयान से पहले भी 10 मार्च को राज्यसभा में भी गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ये कह चुके हैं कि आजादी के बाद एक नीति के तौर पर सरकार ने तय किया था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SCs and STs) को छोड़कर जनगणना को जाति आधारित नहीं रखा जाएगा.
लेकिन 31 अगस्त 2018 में एक मीटिंग की अध्यक्षता करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि हम समीक्षा कर रहे हैं. तब प्रेस सूचना ब्यूरो ने एक बयान में ये कहा, ‘ये उल्लिखित है कि पहली बार ओबीसी डाटा भी इकट्ठा किया जाएगा.’
लेकिन जब एक आरटीआई दायर कर पूछा गया कि इस मीटिंग के मिनट्स बताएं तो रजिस्ट्रार जनरल के आफिस से कहा गया कि इस मीटिंग में ओबीसी डाटा का उल्लेख नहीं हुआ और ना ही इस मीटिंग के कोई मिनट्स जारी किए गए.
इस मामले पर यूपीए का स्टैंड क्या रहा?
– वर्ष 2010 में तत्कालीन कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जाति और समुदाय आधारित डाटा को वर्ष 2010 की जनगणना में शामिल करने के लिए एक पत्र लिखा था. 01 मार्च 2011 को तब लोकसभा में एक छोटी बहस में गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था, ‘केंद्र और राज्यों के पास ओबीसी की अपनी सूचियां हैं. कुछ राज्यों के पास ओबीसी की सूची है और कुछ के पास नहीं है और उनके पास अति पिछड़ा वर्ग की सूची भी है.’ तब रजिस्ट्रार जनरल ने भी ये कहा था कि इस सूची में कुछ नई और कुछ खत्म हो गई श्रेणियां भी हैं, मसलन अनाथ और निराश्रित बच्चों की. कुछ जातियां एससी और ओबीसी दोनों सूचियों में पाईं गईं. अनूसूचित जाति के ईसाई या मुस्लिम धर्म में जा चुके लोगों को भी अलग अलग राज्यों में अलग तरीके से ट्रीट किया जाता है. इसे लेकर और भी सवाल तब पूछे गए थे.
तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि कैबिनेट इस मामले में जल्दी ही कोई फैसला करेगी.’ इसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अगुआई में मंत्रियों की एक समिति भी बनाई गई. लेकिन इसकी कुछ मीटिंग्स के बाद यूपीए सरकार ने पूरी तरह से सोशियो इकोनामिक कास्ट सेंसस कराने का फैसला लिया.
तब सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना के डाटा का क्या हुआ?
– तब 4893,60 करोड़ रुपये की लागत से ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत ग्रामीण इलाकों में और शहरी गरीबी उन्मूलन और हाउसिंग मंत्रालय के तहत शहरी इलाकों में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना शुरू की गई. लेकिन इससे जातिगत डाटा को अलग ही रखा गया. इसके डाटा को दोनों मंत्रालयों ने मिलकर 2016 में प्रकाशित किया.
कच्चे जाति डाटा को सामाजिक न्याय और अधिकार मंत्रालय को सौंप दिया गया, जिसने पूर्व नीति आयोग के चेयरपर्सन अरविंद पनगड़िया की अगुआई वाली विशेषज्ञों की एक समिति भी गठित की गई थी ताकि इस डाटा को क्लासिफाइड और कैटेगराइज किया जा सके. ये अभी मालूम नहीं है कि इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है या नहीं लेकिन अभी ऐसी कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है.
इस पर देश का क्या रुख है?
– राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जाति जनगणना पर कोई हाल फिलहाल में बयान नहीं दिया है. लेकिन वो इस आइडिया का पहले विरोध कर चुका है. 24 मई 2010 में आरएसएस के सर कार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने नागपुर में एक बयान में कहा था, हम कैटेगरीज को पंजीकृत करने के खिलाफ नहीं हैं लेकिन जातियों को दर्ज करने के विरोध में हैं. उन्होंने कहा था कि जाति आधारित जनगणना उस विचार या योजना के खिलाफ जाता है जिसमें जातिविहीन समाज की कल्पना की गई है और ऐसा खुद बाबासाहेब अंबेडकर ने संविधान में लिखा है. अगर ऐसा कुछ किया गया तो वो सामाजिक सद्भाव के लिए अच्छा नहीं होगा.
कितने चरणों में होगी इस बार जनगणना?
– केंद्र सरकार ने फैसला लिया है कि देश में दो चरणों में जनगणना 2021 (Census 2021) की जाएगी. हाउलिस्टिंग और हाउसिंग सेंसस अप्रैल से सितंबर 2020 तक और जनसंख्या गणना 9 से 28 फरवरी 2021 तक.
देश में पहली बार जनगणना कब हुई थी?
– 1872 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मेयो के अधीन देश में पहली बार जनगणना कराई गई, उसके बाद यह हर 10 वर्ष बाद कराई गयी. हालांकि भारत की पहली संपूर्ण जनगणना 1881 में हुई. 1949 के बाद से ये भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त द्वारा कराई जाती है. 1951 के बाद की सभी जनगणनाएं 1948 की जनगणना अधिनियम के तहत कराई गईं. 2011 तक भारत की जनगणना 15 बार की जा चुकी है.
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