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कांग्रेस ने कर लिया स्वीकार! शरद पवार के हाथों में महाराष्ट्र सरकार का कंट्रोल

मुंबई. कोरोना वायरस के फैलने के अलावा अगर महाराष्ट्र में कोई खबर है तो वो है वहां के गठबंधन की सरकार. जहां सभी घटक दल एक दूसरे के खिलाफ ही लाइन खींचते नज़र आते हैं. पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बयान देते हैं कि वो राजनीतिक तौर पर अपनी सहयोगी पार्टी कांग्रेस और एनसीपी के खिलाफ थे. तो दूसरी तरह राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले ने अपने बयान से आग में घी डालने का काम किया, जब उन्होंने एनसीपी के संस्थापक शरद पवार को मौजूदा सरकार का रिमोट कंट्रोल करार दे दिया.

नाना पटोले ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि महाराष्ट्र सरकार का रिमोट शरद पवार के हाथों में है. हम (कांग्रेस) किसी भी बड़े नेता के खिलाफ कोई बयान नहीं देते, लेकिन बाहरी लोगों को कोई भी बयान देने से पहले अपनी पार्टी में झांक लेना चाहिए. वहीं, शरद पवार ने पलटवार करते हुए कहा कि वो छोटे लोगों के बयान पर प्रतिक्रिया देना पसंद नहीं करते, अगर सोनिया गांधी ने कुछ कहा होता तो वो ज़रूर जवाब देते. पवार ने कहा कि इस तरह के बयान देकर पटोले अपनी पार्टी की कसम का ही निरादर कर रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस, शिवसेना के नेतृत्व में बनी महाराष्ट्र विकास आघाडी (एमवीए) सरकार जिसमें एनसीपी भी शामिल है के साथ मिलकर अगला चुनाव भी लड़ेगी.

एनसीपी के मुखिया ने कहा कि हर दल खुद का विस्तार चाहता है, अपना आधार मजबूत करना चाहता है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है. अगर शिवसेना ने अपनी बात रखी तो कांग्रेस ने भी ऐसा किया, एनसीपी भी इसी तरह का तरीका अख्तियार करती. तीनों पार्टियां मिलकर सरकार चला रही हैं लेकिन वे अलग-अलग संगठन हैं.

एमवी एक में क्या है नया मसला ?
भारत की सबसे पुरानी पार्टी का महाराष्ट्र में साझा सरकार बनाना बस खुद को बचाए रखने का एक तरीका मात्र था. देश भर में तेजी से घटते जनाधार को देखते हुए उन्होंने ये कदम उठाया. कांग्रेस लीडर हमेशा ही तीन पार्टी की सरकार में असहज रहे हैं, उनकी अक्सर यही शिकायत होती है कि वो इस गठबंधन में तीसरे पहिए की भूमिका में हैं. पार्टी का वरिष्ठ नेतृत्व जब एमवीए का गठन हो रहा था तब शिवसेना के साथ गठबंधन बनाने के सख्त खिलाफ था. लेकिन भाजपा को दूर रखने के लिए उन्हें ये कदम उठाना पड़ा.

पटोले हमेशा गठबंधन पर बंदूक ताने रहते हैं. बीते दिनों उनके इस बयान पर बवाल हो गया था जब उन्होंने कह दिया था कि अगले चुनाव में उनकी पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी और मुख्यमंत्री कांग्रेस का बनेगा. उन्होंने तो ये तक कह डाला था कि अगर पार्टी अनुमति दे तो वो खुद मुख्यमंत्री के उम्मीदवार होंगे. उन्होंने कहा, ‘हम पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि नवंबर में होने वाले स्थानीय चुनावों में हम अकेले लड़ेंगे और आगे विधानसभा चुनाव भी हम खुद के दम पर लड़ेंगे. हम अपने सहयोगी दलों को किसी धोखे में नहीं रखना चाहते हैं. हम अपनी तैयारी कर रहे हैं और वे भी अपनी तैयारी के लिए आज़ाद हैं. 2024 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी.’ ये मनमुटाव तब और बढ़ गया जब पटोले ने इल्जाम लगाया कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उप मुख्यमंत्री अजित पवार के कहने पर गुप्तचर संस्था उनकी निगरानी कर रही थी.

2019 में जब से सरकार बनी है तभी से कांग्रेस की ये शिकायत रही है कि जब भी फैसले की बात होती है तो शिवसेना और एनसीपी एक साथ होते हैं लेकिन कांग्रेस को हमेशा फैसला लेने से दूर रखा जाता है. उसे सरकार में दोयम दर्जा मिला हुआ है.

शरद पवार की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा

गठबंधन के सबसे कद्दावर नेता पवार को ही इस गठबंधन में एक दूसरे से विपरीत विचारों की पार्टियों को साथ लाने का श्रेय जाता है. अक्सर ये इल्जाम लगाया जाता है कि सरकार ठाकरे नहीं पवार चला रहे हैं.

पवार उस वक्त ज्यादा सुर्खियों में आ गए जब वो चुनाव रणनीतिज्ञ प्रशांत किशोर से मई में तीन बार मिले. इस मुलाकात के बाद कयास लगाए जाने लगे कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के विजयी रथ को रोकने के लिए सारी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करके पवार यूनाइटेड फ्रंट बनाने की तैयारी में हैं.

हालांकि पवार इन सारे कयासों से इनकार करते हुए कहते हैं कि 2024 के बारे में अब तक कोई फैसला नहीं लिया गया है. उनका कहना था कि चुनाव बहुत दूर है और राजनीति में हालात बदलते रहते हैं.

और उद्धव ठाकरे का क्या ?
केबिनेट में फेरबदल के ठीक एक दिन पहले उद्धव ठाकरे की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात से भाजपा-सेना के दोबारा मिलन के कयास लगाए जा रहे हैं. रिपोर्ट बताती हैं कि 24 घंटे की सरकार बनाने के बाद राज्य से बाहर हुई भाजपा शायद ठाकरे को मुख्यमंत्री बने रहने देने पर राजी हो जाए. इसका मतलब ये है कि देवेंद्र फडणवीस को अपनी महत्वाकांक्षा को किनारे करना होगा. वैसे भी फडणवीस कह चुके हैं कि हमारे सेना के साथ मतभेद हैं लेकिन हम दुश्मन नहीं है.

ठाकरे की गिनती मजबूत क्षेत्रीय नेताओं में होती है, महाराष्ट्र जैसे राज्य पर शासन करके उनका आंतरिक मूल्य बढ़ रहा है. उन्होंने अपने तरीके से सेना 2.0 को नया रूप दिया है. जिसमें कट्टर हिंदुत्व के बजाए सर्व धर्म समभाव का नरम रवैया अपनाया गया है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के लिए गठबंधन के सहयोगियों की कहासुनी के बावजूद उन्हें साथ रखना एक बड़ी चुनौती है. हालांकि इसमें तीनों की ही भलाई है क्योंकि टिके रहने के लिए तीनों को साथ चलना ही होगा, भले ही कोई खुद को तीसरी टांग समझे या उसे बताया जाए.

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