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Ashadh Vinayak Chaturthi Katha: अषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी आज, गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए व्रत के बाद पढ़ें ये कथा

Ashadh Vinayak Chaturthi Katha: आज अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी कि 13 जुलाई मंगलवार को विनायक चतुर्थी व्रत है. भक्तों ने आज गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखा है. भक्तों ने सुबह उठकर स्वच्छ होकर गणेश भगवान की पूजा-अर्चना (Worship Lord Ganesha) की और आरती का पाठ किया. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ विनायक चतुर्थी का व्रत करता है उसे गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस द‍िन गणपत‍ि बप्पा की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के सभी ब‍िगड़े कार्य बन जाते हैं. साथ ही अगर जीवन में किसी तरह की कोई बाधा चली आ रही है तो वो भी समाप्त हो जाती है. गणपति बप्पा अपने भक्तों के विघ्नों को हर लेते हैं इसलिए इन्हें विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है. आइए जानें विनायक चतुर्थी की कथा…

विनायक चतुर्थी की पौराणिक कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे. वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ खेलने को कहा.

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शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’

उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया. यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं. खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया.

यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया.

बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- ‘यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे.’ यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं.

एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया. उसकी श्रद्धा से गणेशजी प्रसन्न हुए. उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा.

उस पर उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों.’

तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए. इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई.

चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई.

तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई. यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई. तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया. व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले. उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है. इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)

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