क्या सिद्धू हैं दो नाव पर सवार या है सिर्फ आलाकमान पर दबाव की रणनीति?

अगर पिछले दिनों के घटनाक्रम को देखें तो साफ लगता है सिद्धू का ताजातरीन ट्वीट आम आदमी पार्टी की तारीफ से ज्यादा अपनी पार्टी यानी कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति ज्यादा है. एक दिन पहले ही पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने कहा था कि पंजाब का संकट सुलझ गया है और वहां अगले दो-तीन दिनों में नए प्रदेश अध्यक्ष को मनोनीत कर दिया जाएगा. सिद्धू को मालूम है कि सूबे के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह उन्हें प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनने देना चाहते. ऐसे में सिद्धू ने अपने ताजा ट्विट के जरिए आलाकमान पर दबाव बनाने का आखिरी हथियार चलाया है. यानी अगर उन्हें अध्यक्ष ना भी बनाया जाए, तो कैप्टन के समकक्ष करने की कोशिश हो.
ट्वीट के जरिए ये संदेश देना चाहते हैं सिद्धू
वो इस ट्वीट के जरिए ये संदेश देना चाहते हैं कि या तो उन्हें उनके मन मुताबिक पद दिया जाए, या फिर उनके पास दूसरे यानी आम आदमी पार्टी के विकल्प भी खुले हुए हैं. हालांकि ये कहना अभी मुश्किल होगा कि उनकी ये दबाव की राजनीति कितना और किस हद तक असर करती है.
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हालांकि आम आदमी पार्टी के पंजाब से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सिद्धू पर पूरी तरह से विश्वास कर पाना बेहद मुश्किल है. ऐसे में ये कहना उचित नहीं होगा कि अगर सिद्धू की कांग्रेस के साथ बात नहीं बनती, तो आम आदमी पार्टी के दरवाजे बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार उनके लिए हमेशा खुले ही हुए हैं. उन्होंने बताया कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है.
2016 में कांग्रेस में जाने से पहले सिद्धू और आम आदमी पार्टी को लेकर काफी खबरें उड़ीं और उसका पार्टी को खामियाजा ही भुगतना पड़ा. दरअसल आम आदमी पार्टी के लिए दिक्कत ये भी है कि उन्हें पंजाब के चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए एक उम्मीदवार की जरूरत तो है, पर वो उसके लिए सिद्धू पर पूरा विश्वास नहीं कर पा रहे हैं. पार्टी के एक नेता ने कहा कि पिछले दिनों पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में बोला कि वहां का सीएम उम्मीदवार एक सिख ही होगा और पंजाब से ही होगा. उसके बाद से सिद्धू और उनके करीबियों को लगता है कि आम आदमी पार्टी हमेशा उनके लिए पलक पांवड़े बिछाकर खड़ी है, हालांकि ऐसा नहीं है.
अब ऐसे में लाख टके का सवाल है कि अगर कांग्रेस ने उन्हें पंजाब का प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया तो क्या होगा. लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि कुछ सवालों के जवाब भविष्य में ही छिपे होते हैं और उनके होने से पहले किसी को पता नहीं लगता. कुछ ऐसा ही इस मामले में भी है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के एक नेता की ये टिप्पणी भी सही लगती है कि राजनीति में ऐसा नहीं होता कि एक पार्टी आपकी बात नहीं माने तो दूसरी पार्टी बिना अपना नफा-नुकसान तोले आपको सिर-आंखों पर बिठा ले.
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