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भारत में कोरोना वायरस को घेरने की तैयारी, जानिए कैसे काम करता है जीनोम सीक्‍वेंसिंग का नेटवर्क

नई दिल्‍ली. देश में कोरोना की दो लहरें आ चुकी हैं. तीसरी लहर (Third Wave) की संभावना जताई जा रही है. हालांकि पूरे भारत में अब ऐसा नेटवर्क बिछा दिया गया है कि कोरोना का कोई भी वेरिएंट, कोरोना में हो रहे म्‍यूटेशन (Mutation) के अलावा देश में आने वाले किसी भी वायरस (Virus) की जानकारी यहां के वैज्ञानिकों को तत्‍काल मिल जाएगी. इतना ही नहीं वायरस की गंभीरता और प्रभाव की जानकारी मिलने से उस पर लगाम भी लगाई जा सकेगी.

देश में इनसाकॉग (कोविड19 वायरस के जीनोम सिक्वेंसिंग का पैन इंडिया नेटवर्क) ऐसा ही नेटवर्क तैयार किया गया है. जिसमें जीनोम सीक्‍वेंसिंग के माध्‍यम से वायरस के बारे में सभी जानकारियां इकठ्ठी करना आसान हो गया है. इसके आधार पर अब कोरोना को घेरने के लिए रणनीति बनाना संभव होगा.

इनसाकॉग के चेयरमैन डॉ. एन.के अरोड़ा का कहना है कि वायरस को रोकने के लिए उसमें बदलावों की जानकारी होना बहुत जरूरी है. यह बहरूपिया वायरस है जो वेश बदल लेता है. ऐसे में वायरस के वेरिएंट (Corona Virus Variants) का फालोअप करना भी जरूरी है. साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि किस वजह से डेल्टा वेरिएंट ज्‍यादा संक्रामक है और कैसे जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) संक्रमण को बढ़ने से रोक सकती है.

सवाल. क्‍या है इनसाकॉग? हाल ही में इसके अपना दायरा बढ़ाने के पीछे क्‍या है अहम वजह?

जवाब. वायरस के किसी भी प्रकार के म्यूटेशन पर सख्त निगरानी रखने की जरूरत होती है. इससे पहले कि वह एक बड़े स्तर पर अपना प्रभाव छोडे़ या संक्रमण बढ़ाए, स्क्रीनिंग या मॉनिटरिंग संक्रमण को रोकने में मदद करती है. इसके लिए दिसंबर 2020 में द इंडियन सार्स सीओवी-टू जीनोमिक्स कांसोटोरियम (इनसाकॉग) का गठन किया गया है.  शुरूआत में इससे देशभर की दस लैबारेटरी जुड़ी हुई थी, अब इनकी संख्या बढ़कर 18 हो गई है. इनसाकॉग के गठन का अहम मकसद यह था कि सभी लैबोरेटरी के एसएआरसीओवी-टू की जीनोम सिक्वेंसिंग संबंधी सर्विलांस के होल जीनोम सिक्वेंसिंग (डब्लूजीएस) के क्लीनिकल और एपिडेमियोलॉजिकल डाटा की अधिक गहनता से पड़ताल की जा सके, और इस बात की जानकारी रहे कि वायरस में कौन सा म्यूटेशन हो रहा है, यह कितना घातक होगा, मानव शरीर की इम्यूनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता को कितना प्रभावित करेगा, यह कितना संक्रामक है और वैक्सीन की प्रभावकारिता को असर करेगा या नहीं या फिर वर्तमान में वायरस की जांच की जो तकनीक अपनाई जा रही हैं, उससे वायरस की पहचान हो पाएगी या नहीं.

सवाल. इस डाटा का आकलन कौन करेगा ?

जवाब. सभी लैबारेटरी से प्राप्त डाटा का आंकलन एनसीडीसी (द नेशनल सेंटर फॉर डिसीस कंट्रोल) द्वारा किया जाता है. इसके लिए भौगोलिक दृष्टि से देश को कई हिस्सों में बांटा गया है और हर एक भाग में एक लैबारेटरी को इस बात की जिम्मेदारी दी गई कि वह अपने क्षेत्र में होने वाले म्यूटेशन की मॉनिटरिंग करें. हमने लगभग चार जिलों में 180-190 क्लस्टर बनाएं हैं, इन सभी क्लस्टर में ऐसे मरीजों की जांच के औचक सैंपल जैसे स्वॉब और लार को लिया जो अत्यंत गंभीर पाए गए, या जिन्हें वैक्सीन के बाद संक्रमण हुआ या जिन्हें अन्य कई अलग तरह की दिक्कतें पाई गईं. इन प्राप्त सभी सैंपल को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए स्थानीय लैबोरेटरी में भेजा गया. इस समय देश की क्षमता हर महीने पचास हजार सैंपल जांच करने की हो गई है, जबकि पहले यह क्षमता लगभग केवल तीस हजार ही थी.

सवाल. वेरिएंट की जांच और फालोअप के लिए देश में किस प्रकार का प्रबंधन या मैकेनिज्म अपनाया जाता है?

जवाब– भारत में बीमारियों की जांच के लिए एक व्यवस्थित इंटिग्रेटेड डिसीज सर्विलांस व्यवस्था है, आईडीएसपी के जरिए स्थानीय स्तर पर सैंपल को इकट्टा कर उन्हें रिजनल सिक्वेंसिंग लैबोरेटरी (आरजीएसएल) को भेजा जाता है, आरजीएसएल या स्थानीय स्तर की लैबारेटरी की यह जिम्मेदारी होती है कि वह हर म्यूटेशन के वेरिएंट ऑफ कंसर्न और वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट की पहचान करें. लैबोरेटरी द्वारा की गई इन दो जांच के परिणाम की क्लीनिकल एपिडियोमेलॉजी के लिए सैंपल को सेंट्रल सर्विलांस यूनिट को भेजा जाता है और स्टेट सर्विलांस ऑफिसर को म्यूटेशन की जानकारी दी जाती है. इसके बाद सैंपल को अधिकृत बायोलैब में भेज दिया जाता है. लैबोरेटरी अगर ऐसे किसी म्यूटेशन को देखती हैं जो पब्लिक हेल्थ के लिए मायने रखता है तो उसकी जानकारी साइंटिफिक एंड क्लीनिकल एडवाजरी ग्रुप्र को भी दी जाती है. एसीएजी (साइंटिफिक एंड क्लीनिकल एडवाइजरी ग्रु्रप) विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस बात पर चर्चा करते हैं कि वेरिएंट का नया बदलाव कितना हानिकारक या गंभीर है या फिर इससे बचाव या नियंत्रण के लिए किस तरह के कदम उठाए जाने चाहिए, सलाहकारों से विचार विमर्श के बाद सुझावों को आगे की योजना बनाने के लिए सेंट्रल सर्विलांस यूनिट को भेज दिया जाता है.

आईडीएसपी और एनसीडीसी द्वार किए गए क्लीनिकल एपिडिमेलॉजी सर्विलांस से प्राप्त म्यूटेशन संबंधी जानकारी केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च, डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी और सीएसआईआर काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च व अन्य राज्य स्वास्थ्य एजेंसियों के साथ साझा की जाती है.  इस प्रकार  वायरस के नये म्यूटेशन या वेरिएंट की पहचान की जाती है और वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर इस बात का निर्णय लिया जाता है कि वेरिएंट का मानव स्वास्थ्य पर किस तरह का असर पड़ेगा, यह कितना संक्रामक है, वैक्सीन की प्रभावकारिता को कम करेगा या प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित नहीं करेगा आदि.

सवाल. इस समय डेल्टा वेरिएंट की अधिक चर्चा हो रही है, वेरिएंट में ऐसा क्या है जो इसे अत्यधिक संक्रामक बनाता है?

जवाब. कोविड19 के बी.1.617.2 वेरिएंट को ही डेल्टा वेरिएंट के नाम से जाना जाता है. यह भारत में अक्टूबर 2020 में पहचाना गया था, और शुरुआत में इस वेरिएंट को ही भारत में कोविड की दूसरी लहर का जिम्मेदार भी माना गया. आज कोविड के 80 प्रतिशत से ज्‍यादा मामलों में यह वेरिएंट जिम्मेदार है. यह महाराष्ट्र से उभरा और मध्य और पूर्वी राज्यों में प्रवेश करने से पहले देश के पश्चिमी राज्यों के साथ उत्तर की ओर इसका प्रभाव बढ़ता गया.

डेल्टा वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन होने की वजह से मानव शरीर की कोशिकाओं के रिसेप्टर एसीईटू के साथ आसानी से सख्ती से चिपक जाते हैं, इसी वजह से यह अधिक संक्रामक हो जाते हैं और मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से बच कर निकल जाते हैं. डेल्टा वेरिएंट पूर्व में पहचान में आए अल्फा वेरिएंट के एवज में चालीस से साठ प्रतिशत अधिक संक्रामक हैं, और यह अब तक यूके, यूएसए, सिंगापुर सहित 80 से अधिक देशों में फैल चुका है.

सवाल. क्या अन्य वेरिएंट के एवज में डेल्टा वेरिएंट अधिक गंभीर प्रभाव छोड़ता है?

जवाब.  ऐसे कई अध्ययन हैं जो यह दर्शाते हैं कि इस तरह के कुछ अन्य म्यूटेशन भी हैं जो सिंकिटियम गठन को बढ़ावा देते हैं, मानव कोशिका पर हमला करने पर यह दोहरी गति से बढ़ने लगते हैं. इसकी वजह से प्रमुख अंग जैसे फेफड़े की नसों में संकुचन के रूप में गहरा असर पड़ता है, हालांकि अभी यह स्पष्ट रूप से कहना मुश्किल है कि डेल्टा वेरिएंट अत्यधिक गंभीर है या नहीं. क्योंकि भारत में कोविड की दूसरी लहर के दौरान होने वाली मौतों की उम्र का अगर आंकलन करें तो यह पहली लहर के समान ही देखी गई.

सवाल. अभी डेल्टा प्लस वेरिएंट की भी बात की जा रही है, क्या डेल्टा प्लस वेरिएंट डेल्टा वेरिएंट से भी अधिक आक्रमक है?

जवाब. महाराष्ट्र, तमिलनाडू और मध्यप्रदेश को मिलाकर देशभर के 11 राज्यों में डेल्टा प्लस वेरिएंट एवाई-1 और एवाई.2 के 50 से 60 मामले देखे गए हैं. एवाई.2 नेपाल, पुर्तगाल, स्विटजरलैंड, पोलैंड और जापान में भी देखा गया, लेकिन एवाई.2 के केस अभी कम देखे गए हैं. वेरिएंट की संक्रामकता, वैक्सीन पर प्रभावकारिता, टीके से बचकर निकलने की विशेषता आदि को लेकर अभी अध्ययन किए जा रहे हैं.

सवाल. क्या मौजूदा वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ भी कारगर या प्रभावी है?

जवाब. जी हां, आईसीएमआर द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार मौजूदा सभी वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ भी कारगर हैं.

सवाल.  देश के कुछ हिस्सों अभी भी कोविड के अधिक मामले देखे जा रहे हैं, इसकी क्या वजह हो सकती है?

जवाब.  कोविड के कुल मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर कमी आई है, लेकिन देश के कुछ हिस्सों में अभी भी कोविड के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है. नार्थ ईस्ट राज्यों में टेस्ट पॉजिटिविटी दर में निरंतर बढोतरी हो रही है. इसके साथ ही दक्षिण के कुछ राज्यों में भी कोविड के मामले बढ़ रहे हैं, संभव है कि इनमें से अधिकांश की वजह डेल्टा वेरिएंट ही हो.

सवाल. क्या भविष्य में कोविड की आने वाली लहरों को रोका जा सकता है?

जवाब. कोई भी वायरस पहले आबादी के एक बड़े हिस्से को संक्रमित करना शुरू करता है, जो संक्रमण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं वह इसकी चपेट में आ जाते हैं. एक बड़ी आबादी को सफलता पूर्वक संक्रमित करने के बाद, इसका असर कम हो जाता है और लोगों में प्राकृतिक रूप से संक्रमण के प्रति विकसित प्रतिरक्षा कवच जब कम होने लगता है तब यह वापस हमला करते हैं. यह कहा जा सकता है कि नया संक्रमण पूर्व संक्रमण से अधिक गंभीर और घातक भी हो सकता है. दूसरी लहर अभी खत्म नहीं हुई है और तीसरी लहर का आना या न आना इस बात पर निर्धारित करेगा कि कितने लोग कोविड वैक्सीन लगवाते हैं या कितनी गंभीरता से कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन किया जाता है. कम से कम ऐसा करना तब तक जरूरी है जबतक की हम आबादी के एक बड़े हिस्से का टीकाकरण नहीं कर लेते. इसलिए लोगों को वैक्सीन लगवाने पर गंभीरता से ध्यान देने के साथ ही कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करना है.

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