जम्मू ड्रोन हमला: भारत में बन रही नई कॉमर्शियल ड्रोन नीति, 7 प्वाइंट में जानें सब कुछ

ड्रोन इकोसिस्टम पॉलिसी रोडमैप 2019 में तैयार किया गया था और 2020 में टिप्पणी के लिए सामने रखा गया था. हालांकि ये पॉलिसी साल 2021 में लागू हुई जब उसे आधिकारिक रूप से राजपत्र में प्रकाशित किया गया. सरकार की ओर से बनाई जा रही ड्रोन पॉलिसी चुनौतिपूर्ण है क्योंकि आने वाले समय में ड्रोन जिस तरह से विकसित हो रहे हैं उसे देखते हुए उस पर नियंत्रण जरूरी है.
आइए जानते हैं इन पॉलिसी की सात बड़ी बातें :-
1- बियॉन्ड विज़ुअल लाइन ऑफ़ साइट ऑपरेशंस
ड्रोन बेहद खास होते हैं क्योंकि इन्हें दूर से नियंत्रित किया जाता है. ये एयरक्राफ्ट से बिल्कुल अलग होते हैं क्योंकि इसमें वीजुअल कॉन्टेक्ट नहीं होता जबकि एयरक्राफ्ट में हमेशा ही एक पायलट रहता है. पहले की नीति में ड्रोन संचालन 400 फीट तक सीमित था लेकिन नई नीति यह मानती है कि ड्रोन संचालन 400 फीट (120 मीटर) तक सीमित नहीं हो सकता है और इसके लिए नए प्रावधान बनाए गए हैं. यह एक ट्रांसपोंडर के माध्यम से किया जाता है जो ड्रोन को रडार पर ट्रैक कर सकता है. ये बियॉन्ड विज़ुअल लाइन ऑफ़ साइट ऑपरेशंस (BVLOS) को तीन बिंदुओं पर फोकस करता है. इसमें सुरक्षा उपाय, संचालन और गोपनीयता शामिल हैं. सुरक्षा उपाय में ड्रोन के डिजाइन, प्रमाण पत्र और संचालन शामिल है जो कि ड्रोन पोर्ट से अधिकृत हैं.
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2- ऑटोनॉमस संचालन
ड्रोन संचालन की खूबी यह है कि इसे उड़ान के कुछ हिस्सों या फिर पूरी उड़ान के लिए ही स्वचालित किया जा सकता है. इसको ध्यान में रखते हुए ड्रोन को अलग-अलग भार के हिसाब से अलग-अलग श्रेणी में रखा गया है. इसका कारण ये है कि ड्रोन का भार उसके संभावित नुकसान का संकेत देता है. इसके अलावा ड्रोन पॉलिसी ये मानती है कि ड्रोन के संचालन में कुछ एल्गोरिदम को मंजूरी दे दी जानी चाहिए. यही नहीं इस पॉलिसी में ड्रोन को संचालित करने वाले पायलटों को प्रमाणित करने के लिए कहा गया और ये प्रमाण पत्र इस तरह से तय होगा कि पायलट को एयरक्राफ्ट चलाने का कितना अनुभव है. इसके साथ ही ये प्रमाण पत्र भारत में ही दिया जाएगा.
3- नो परमिशन, नो टेकऑफ़
ये पॉलिसी ड्रोन को सीमित करती है. इस पॉलिसी के मुताबिक देश में वही ड्रोन चलेंगे जो पंजीकृत हैं और राष्ट्रीय ड्रोनपोर्ट रजिस्ट्री का एक हिस्सा हैं. उड़ान भरने से पहले किसी भी ऑपरेटर को तीन चीजों के बारे में जानकारी देनी होगी. पहला ड्रोन को कहां उड़ान भरनी है और उसका रास्ता क्या होगा. दूसरा कितनी मिनट की उड़ान है और पायलट से जुड़ी हर जानकारी. हालांकि ये तर्क दिया जा सकता है कि ये पॉलिसी ड्रोन के कॉमर्शियल इस्तेमाल में बाधा बन सकती है. लेकिन इसे डिजिटल स्काई के माध्यम से डिजिटल किया गया है.
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4. ड्रोन कॉरिडोर
ड्रोन उड़ानों की अनुमति केवल नामित ड्रोन कॉरिडोर में ही दी जाती है. ड्रोन कॉरिडोर पहले से तय होने चाहिए और उन्हें नेविगेशन सेवाओं (एएनएस) की रजामंदी से ही निर्धारित किया जाना चाहिए. खास बात ये है कि एएनएस भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के दायरे में आता है. ये इसलिए जरूरी है क्योंकि ड्रोन की डिजाइन राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र से तय होती है और इसे ANS (सैन्य क्षेत्रों को छोड़कर) द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
5. बीमा
ये भले ही हल्का विषय है लेकिन कॉमर्शियल ड्रोन के लिए जरूरी है. ये नीति प्रत्येक ड्रोन को पूर्व निर्धारित मापदंडों पर लाइफ साइकल निर्धारित करती है. इसके अलावा बीमा कवर में कार्गो लाइबिलिटी, ड्रोन में होने वाले नुकसान और थर्ड पार्टी रिस्क को कवर करती है. इस नीति की चुनौती ये है कि इसमें दंड का सही तरीके से प्रावधान नहीं किया गया है.
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6. ड्रोनपोर्ट्स
वर्तमान नीति केवल ड्रोन को ‘ड्रोनपोर्ट्स’ नामक बंदरगाहों पर उतरने की अनुमति देती है. लैंडिंग और टेकऑफ़ की सुविधा के साथ ही इन बंदरगाहों में ड्रोन को चार्ज किया जा सकता है, कार्गो की सुविधा और ट्रेनिंग सुविधाएं भी शामिल हैं. बता दें कि ड्रोन पोर्ट ऑपरेटर को ड्रोन पोर्ट ऑपरेटर कहा जाता है और उनका काम ये है कि वह ड्रोनपोर्ट की सुरक्षा अच्छे से संचालित हो और जितने भी ड्रोन पोर्ट में उतर रहे हैं उनका रजिस्टर बनाकर रखा जाए.
7. नियामक ढांचा और तंत्र
इस पॉलिसी में एक स्पेशल सेल बनाने को कहा गया है जो कि नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के अंतर्गत आएगा. इस सेल का काम ड्रोन इंडस्ट्री के लिए गाइड लाइन देना है. भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के एक सदस्य को सहयोगी रूप से या विशेष प्रकोष्ठ के एक भाग के रूप में काम करने के लिए नामित किया गया है. ऐसा इसलिए किया जाना है, क्योंकि उस व्यक्ति को ड्रोन को सही तरीके से काम करने का अनुभव होता है.