कोरोना के खिलाफ किस तरह और कितनी कारगर है मॉडर्ना वैक्सीन? जानें सब कुछ– News18 Hindi
नई दिल्ली. अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना की वैक्सीन के रूप में भारत को कोविड-19 (Covid-19) के खिलाफ चौथा टीका मिल गया है. तीसरी लहर (Third Wave) के डर के बीच देश बड़े स्तर पर टीकाकरण करने की योजना बना रहा है. ऐसे में विदेशी वैक्सीन को मंजूरी मिलना काफी अहम माना जा रहा है. खास बात यह भी है कि मॉडर्ना की वैक्सीन mRNA प्लेटफॉर्म पर तैयार हुई है. mRNA प्लेटफॉर्म पर तैयार हुए कई वैक्सीन उम्मीदवारों ने ज्यादा प्रभावकारिता के रूप में ट्रायल के दौरान बेहतर नतीजे दिए हैं. आइए इस वैक्सीन को और बेहतर ढंग से जानते हैं.
सबसे पहले, mRNA वैक्सीन का मतलब क्या होता है?
मॉडर्ना और फाइजर वैक्सीन का निर्माण mRNA प्लेटफॉर्म पर हुआ है. इन दोनों को एक वर्ग की वैक्सीन कहा जा सकता है. क्योंकि ये दोनों प्रमुख रूप से इम्यून सिस्टम को तैयार करने के लिए लक्षित पैथोजन या वायरस के जेनेटिक मैटेरियल का इस्तेमाल करती हैं. ऐसी वैक्सीन तैयार करने के लिए वैज्ञानिक वायरस में शामिल जेनेटिक मैटेरियल को निकालते हैं और इंसान के शरीर में डालते हैं.
कोविड-19 की mRNA वैक्सीन के मामले में यह जेनेटिक मैटेरियल इंसान के सेल्स को विशेष स्पाइक प्रोटीन तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करता है. ये स्पाइक प्रोटीन नोवल कोरोना वायरस की सतह पर ठहरता और लोगों को संक्रमित करने में उसकी मदद करता है. अब जब इंसान के सेल्स इस स्पाइक प्रोटीन को तैयार करते हैं, तो इम्यून सिस्टम इसे खतरे की तरह मानता है और इसके खिलाफ एंटीबॉडीज बनाना शुरू कर देता है. इस प्रक्रिया के चलते शरीर को वायरस के खिलाफ तैयार करने में मदद मिलती है. ये वैक्सीन अच्छी इम्यून प्रतिक्रिया तैयार करती हैं और वायरस का लाइव कंपोनेंट इस्तेमाल नहीं किए जाने के चलते टीके को सुरक्षित माना जाता है.
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दूसरा, मॉडर्ना वैक्सीन की प्रभावकारिता दर क्या है? क्या यह वेरिएंट्स के खिलाफ सुरक्षा देती है?
अमेरिका में फाइजर के बाद आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी पाने वाली दूसरी वैक्सीन मॉडर्ना की थी. शुरुआती क्लीनिकल डेटा बताता है कि मॉडर्ना की वैक्सीन नोवल कोरोना वायरस के खिलाफ 94.1 प्रतिशत प्रभावी है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दूसरे डोज के बाद वायरस के खिलाफ पूरी इम्युनिटी तैयार करने में वैक्सीन को करीब दो हफ्ते लगते हैं. क्लीनिकल ट्रायल के अलावा असल दुनिया में भी वैक्सीन 90 प्रतिशत से ज्यादा प्रभावी देखी गई है.
मॉडर्ना ने 29 जून को कहा था कि उसकी वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट का सामना कर सकती है. कंपनी ने कहा था कि mRNA टीका बीटा के मुकाबले डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडीज तैयार करने में ज्यादा प्रभावी है. कंपनी के सीईओ स्टीफन बंसेल ने कहा था, ‘नए डेटा प्रोत्साहित करने और हमारा भरोसा दोबारा तैयार करने वाले हैं कि मॉडर्ना वैक्सीन नए वेरिएंट्स के खिलाफ सुरक्षित रहेगी.’
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तीसरा, क्या इस वैक्सीन का निर्माण भारत में होगा? इसमें कानूनी और परिवहन संबंधी परेशानियों का क्या?
रिपोर्ट्स से पता चला है कि वैक्सीन के शुरुआती डोज मॉडर्ना के स्थानीय साझेदार सिप्ला की तरफ से आयात किए जाएंगे. इसके बाद ये दान के रूप में आएंगे. इस बात की अभी पुष्टि नहीं हो सकी है कि मॉडर्ना की टीका बाजार में बिकने के लिए कब उपलब्ध होगा.
मॉडर्ना ने फाइजर की तरह ही ब्रिजिंग ट्रायल और इंडेम्निटी यानि क्षतिपूर्ति का मुद्दा उठाया था. मॉडर्ना की वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए अनुमति देते हुए नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने कहा कि इंडेम्निटी के मुद्दे पर ‘बात हो चुकी है और केंद्र सरकार ने इसे जांच के दायरे में लिया है.’
भारत में mRNA वैक्सीन की लॉन्चिंग के साथ लॉजिस्टिक एक बड़ा मुद्दा है. इन वैक्सीन को बेहद ठंडी जगह पर रखा जाना जरूरी है. हालांकि, पॉल ने कहा है कि बंद वायल्स को 2-8 डिग्री सेल्सियस तक 30 दिनों के लिए रखा जा सकता है. यह आंकड़ा भारत के कोल्ड स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से ठीक है. वहीं, अगर इस वैक्सीन को लंबे समय के लिए रखना है, तो इसे -20 डिग्री सेल्सियस पर जमाना होगा.