नौकरशाह से नेता बने एके शर्मा क्यों हैं बीजेपी के लिए इतने खास?

राजनीति में अपना अहम स्थान रखने वाले उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और भाजपा के भीतर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में कुछ असंतोष पनप रहा है. ऐसे वक्त में मोदी के आशीर्वाद से शर्मा का चुनाव किसी से छिपा नहीं है.
केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि प्रधानमंत्री का अपनी कोर टीम में अपने भरोसेमंद
अधिकारियों को रखने में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है. शर्मा उनमें विशेष स्थान रखते हैं. और ये साफ था कि शर्मा कोई भी कदम बगैर प्रधानमंत्री की रजामंदी के नहीं उठाएंगे, इसलिए उन्हें कभी खुद को बड़ा बताने की कोशिश भी नहीं करनी पड़ी.
जब मोदी मुख्यमंत्री के पद पर थे तब उनकी विशेष परियोजनाओं को सुचारू रूप से चलाकर शर्मा ने उनका भरोसा अर्जित किया था. इंडियन एक्सप्रेस में छपे लेख के मुताबिक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हर्ष ब्रह्मभट्ट जो उस दौरान मोदी के सीएमओ में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी थे, बताते हैं कि मोदी के लिए सरकार और नौकरशाही दोनों ही पूरी तरह नई थी. ऐसे में उन्हें उन अधिकारियों की ज़रूरत थी जिस पर वो भरोसा कर सके, ब्रह्मभट्ट कहते हैं उन्होंने शर्मा, पी.के मिश्रा और अनिल मुकिम का नाम सुझाया.
एक पूर्व अधिकारी बताते हैं कि, शर्मा के काम को 2001 में तब बहुत वाहवाही मिली जब उन्होंने जिला स्तर पर बेहतरीन काम किया और औद्योगिक विभाग का अनुभव लिया. इसकी वजह से वाइब्रेंट गुजरात समिट में शर्मा मोदी के साथ निवेश हासिल करने के लिए विदेश भी गए थे.
मिश्रा और मुकिम से युवा होने के बावजूद शर्मा सीएमओ में लंबे समय तक रहे, उन्हें कभी भी प्रतिनियुक्ति पर केंद्र नहीं भेजा गया, ब्रह्मभट्ट कहते हैं कि, जब वे एक साल के लिए प्रशिक्षण पर गए तो उनके पद को खाली ऱखा गया. ( मिश्रा अब प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव हैं वहीं मुकिम गुजरात के चीफ सेक्रेटरी हैं. )
जब मोदी दिल्ली पहुंचे, शर्मा उस नौकरशाह के तौर पर उस दौरान अहम थे. मोदी उस वक्त वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन बना रहे थे, उन्होंने उत्तरप्रदेश के मुद्दों की जानकारी के लिए शर्मा को नियुक्त किया. शर्मा उत्तर प्रदेश के मऊ के रहने वाले हैं. उनके पिता मऊ रोडवेड बस स्टेशन के वरिष्ठ इन्चार्ज थे.
पीएमओ में शर्मा को इन्फ्रास्ट्रक्चर ( बुनियादी ढांचों) का कार्यभार दिया गया. मई 2020 में जब कोविड ने देश की आर्थिक हालात को डांवाडोल किया उस दौरान शर्मा एमएसएमई सचिव के तौर पर नियुक्त हुए थे. लेकिन छह महीने के भीतर ही उन्होंने एच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और भाजपा में शामिल हो गए. अधिकारियों का कहना है कि जब शर्मा को उत्तरप्रदेश से एमएलसी का टिकट दिया गया उसी दौरान साफ हो गया था कि मोदी चुनाव से पहले राज्य में कोई अपना आदमी चाहते हैं.
कुछ वक्त गुजरा ही था कि शर्मा को मोदी के लिए एक और मुश्किल का सामना करते नज़र आए, जब कोविड की दूसरी लहर में वाराणसी के हाल बुरे थे, शर्मा को जिले का कोविड प्रभारी नियुक्त किया गया. शर्मा ने तुरंतर जिला स्तर पर और पुलिस अधिकारियों की मीटिंग ली, डीआऱडीओ अस्पताल की स्थापना का निरीक्षण किया और एक टेली-कन्सलटेंसी एप चालू की. जिसकी कमान और नियंत्रण केंद्र के पास था. वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि, पहले ऐसा नहीं था, पहली लहर के दौरान केंद्र ने कुछ भी अपने हाथ में नहीं रखा था, लेकिन जैसे ही शर्मा आए तो साफ हो गया था कि प्रधानमंत्री खुश नहीं थे. दूसरे अधिकारी बताते हैं कि पीएमओ ने ऑक्सीजन के मसले पर, अहम दवाओं, और उपकरणों में मदद पहुंचाई. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक बाद में प्रधानमंत्री ने राज्यों से कोविड प्रबंधन के लिए वाराणसी मॉडल अपनाने की गुहार लगाई.
लेकिन फिर भी शर्मा की प्रशासनिक क्षमताओं को लेकर कुछ लोगों को शंका है. और बतौर राजनेता अभी उनकी परीक्षा होना बाकी है. स्थानीय नेताओं का कहना है कि जब वो वाराणसी में थे उस दौरान उन्होंने पार्टी काडर में किसी से भी मुलाकात नहीं की. शर्मा को बतौर नेता मउ से चुनावी क्षेत्र में लाने की भरपूर कोशिश की जा रही है, खास बात ये है कि मऊ उत्तरप्रदेश का पूर्वी हिस्सा है जिसमें वाराणसी औऱ आदित्यनाथ का गढ गोरखपुर भी शामिल हैं. रेल मंत्री पियूष गोयल ने मऊ से दिल्ली की विशेष ट्रेन की शुरूआत के लिए शर्मा के हस्तक्षेप की तारीफ की है. वहीं मऊ प्रशासन ने भी उनके मार्गदर्शन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया है. हालांकि राजनीति इससे कहीं अलग है, मऊ के भाजपा नेता कहते हैं कि शर्मा को बतौर वरिष्ठ नेता स्वागत है लेकिन उन्हें जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने की जरूरत है.
एक भूमिहार ब्राह्मण होना शर्मा के लिए लाभदायक हो सकता है क्योंकि पूर्वी उत्तप्रदेश में यही जाति बाहुल्यता है और ये भाजपा की समर्थक है. हालांकि इस क्षेत्र में पहले से ही काफी दमदार भूमिहार ब्राह्मण चेहरे मौजूद है. जैसे बसपा के घोषी लोक सभा के सांसद अतुल सिंह राय. अगर 2019 में भाजपा की लहर को छोड़ दें तो राय यहां से करीब 1.2 लाख वोटों से जीते थे. पूर्व भाजपा नेता और अब जम्मू कश्मीर के लेफ्टीनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के सश्क्त भूमिहार ब्राह्मण चेहरा हैं.
अपना पहला राजनीतिक कदम उठाते हुए शर्मा ने हाल ही में अपने ट्विटर हेंडल @aksharmaBharat पर वो चिट्टी पोस्ट की जो उन्होंने उत्तरप्रदेश भाजपा प्रमुख स्वतंत्र देव सिंह को लिखी थी, जिसमें उनका हर एक शब्द निशाने पर लगता हुआ सा प्रतीत हुआ. उन्होंने बताया कि वो किस तरह से आज भी अपने गांव और पूर्वांचंल के संपर्क है, हालांकि लंबे वक्त से वो अपने राज्य से बाहर रहें हैं, उन्होंने कहा कि मोदी की एतिहासिक यात्रा के वो भी अदने से हिस्से रहे हैं. और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उत्तरप्रदेश में भाजपा को वापस लाने के लिए मोदी का नाम ही काफी होगा.
आदित्यनाथ मंत्रालय में उलट फेर की हालिया अफवाहों में शर्मा का नाम भी कई चरणों में शामिल था. भाजपा की राज्य इकाई में उनका उपाध्यक्ष चुना जाना इसी दिशा मे एक कदम माना जा रहा है. अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि स्वाभाविक है कि उन्हें कोई अहम भूमिका दी जानी है लेकिन वो क्या है ये सिर्फ प्रधानमंत्री के दिमाग में है.
वहीं पार्टी का दूसरा धड़े का कहना है कि शर्मा की अच्छी बात ये है कि, वो सुर्खियों में कम रहने वाले हैं और विवादों से दूर हैं. उधर गुजरात के उनके साथी कहते हैं कि उनकी मिलनसारिता उनकी खूबी है वहीं ब्रह्मभट्ट एक कदम आगे बढ़ते हुए शर्मा को अजातशत्रु बताते हैं, जिसका कोई भी शत्रु नहीं होता है. हालांकि राजनीति में ये बात कहना थोड़ी जल्दबाजी हो सकती है.