अल्मोड़ा में दिवाली के बाद हुआ ‘पत्थरों का युद्ध’, कसून और कोटयूड़ा गांव बने विजेता, जानें मामला

रोहित भट्ट
अल्मोड़ा. उत्तराखंड के अल्मोड़ा के ताकुला विकासखंड के विजयपुर पाटिया गांव में गोवर्धन पूजा के दिन पाषाण युद्ध यानी बग्वाल खेली जाती है. चंपावत के देवीधुरा की तर्ज पर ही इसका आयोजन होता चला आ रहा है. पाटिया में पाषाण युद्ध की प्रथा सदियों से चली आ रही है. जबकि बग्वाल में चार गांव के लोग हिस्सा लेते हैं और पचघटिया नदी के दोनों किनारों पर खड़े होकर एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं. इस पाषाण युद्ध में जो भी दल का सदस्य पहले नदी में उतरकर पानी पी लेता है, वह दल विजय घोषित कर दिया जाता है.
इस बग्वाल में पाटिया, भटगांव, कसून और कोटयूड़ा गांव के ग्रामीण हिस्सा लेते हैं. इसमें एक तरफ पाटिया और भटगांव के ग्रामीण होते हैं, तो दूसरी तरफ कसून और कोटयूड़ा के ग्रामीण. इसे देखने के लिए दर्जनों गांवों के लोग आते हैं. पाषाण युद्ध का आगाज पाटिया गांव के मैदान में ढोल-नगाड़ों के बीच गाय की पूजा के साथ किया जाता है. इसके बाद युद्ध का शंखनाद होता है और दोनों ओर से पत्थरों की बौछार शुरू हो जाती है.
इस युद्ध की सबसे बड़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल होने वाले योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करते हैं बल्कि बिच्छू घास व उस स्थान की मिट्टी लगाते हैं. उनका मानना है कि ऐसा करने से वे तीन दिन में ठीक हो जाते हैं. इस साल हुई बग्वाल में कसून और कोटयूड़ा के रणबांकुरों ने सबसे पहले पचघटिया नदी का पानी पीकर विजय हासिल की. यह युद्ध करीब आधे घंटे तक चला.
स्थानीय निवासी छनि राम ने कहा कि विजयपुर पाटिया में बग्वाल कब और क्यों शुरू हुई, इसके बारे में कोई सटीक जानकारी तो नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों की मान्यता है कि जब अल्मोड़ा में चंद वंश राजाओं का शासन था, उस वक्त कोई बाहरी लुटेरा राजा इन गांवों में आकर लोगों से लूटपाट करता था. उससे परेशान होकर एक दिन इन गांवों के लोगों ने लुटेरे राजा और सैनिकों को पत्थरों से मार-मारकर भगाया था. इस घटना में तब 4 से 5 लोगों की मौत हो गई थी. इस स्थान पर काफी खून बहा था. इसके बाद से यहां पर पत्थरों का युद्ध वाली प्रथा आज भी चल रही है.
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Tags: Almora News, Uttarakhand news
FIRST PUBLISHED : October 27, 2022, 13:18 IST